Book Title: Bhagavati Jod 01
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 395
________________ २२. तीजा शतक नों दूजो उदेशो कह्यो, ढाल बासठमीं वारू, आखी अधिक उदारू । भिक्षु भारीमाल ऋषराय थी, 'जय-जश' मंगल माल, संपति संघ सुधारू ।। तृतीयशते द्वितीयोद्देशकार्थः ।।३।२।। ढाल : ६३ दूहा द्वितीय उदेश विषै कह्य, चमर तणो उत्पात। ते तो क्रियाज रूप है, तीजै क्रिया कहात ।। तिण काले नै तिण समय, नगर राजगृह नाम । जाव परिषदा जिन बचन, सुण पोहती निज ठाम ।। तिण कालै नैं तिण समय, जाव वीर शिष्य जाण । मंडियपुत्र नामैं मुनि, प्रकृति-भद्र पहिछाण ।। जाब सेव करतो छतो, वीर प्रतै इम बाय । बोलै जोडी कर बिहुँ, सांभलज्यो सुखदाय ।। ५. *क्रिया किती भगवान ! जिन भाखै इम जान । हे मंडिपुत्र ! पंच क्रियापरूपी सही ।। ६. काइया ते क्रिया करि हुवै जान, अहिक रणिया अशुभ अनुष्ठान । हे मंडिपुत्र ! अथवा शस्त्र थकी कही। १. द्वितीयोद्देशके चमरोत्पात उक्तः स च क्रियारूपोऽतः क्रियास्वरूपाभिधानाय तृतीयोद्देशकः । (वृ०-५० १८१) २. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था जाव परिसा पडिगया। (३।१३३) ३. तेणं कालेणं तेणं ममएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी मंडिअपुत्ते नाम अणगारे पगइभदए ४. जाव पज्जुवाममाणे एवं वयासी-- ५. कइ णं भंते ! किरियाओ पण्णत्ताओ? मंडिअपुत्ता ! पंच किरियाओ पण्णत्ताओ तं जहा ७. पाउसिया ते मच्छर थी व्याप, परितावणिया ते परिताप । हे मंडिपुत्र ! पाणाइवाय हणे तसुं ।। ६. काइया, अहिंगरणिआ अधिकरणं-अनुष्ठानविशेषः बाह्यं वा वस्तु चक्रखड्गादि तत्र भवा तेन वा निवृत्तेत्याधिकरणिकी। (वृ०-प० १८१) ७. पाओसिआ, पारियावणिआ, पाणाइबायकिरिया। (श० ३।१३४) प्रद्वेषो—मत्मरस्तत्र भवा तेन वा निर्वत्ता स एव वा प्राद्वेषिकी। (वृ०-प० १८१) ८. ए पांचूई पिछाण, ज्यांरा भेद जुआ जुआ जाण । ___ आछे लाल, मंडियपुत्र पूछ इसू ।। है. प्रभ ! काइया कितले प्रकार, वीर कहै तिणवार। हे मंडिपुत्र! द्विविध काइया क्रिया कही।। १०. अव्रत सर्व थी चोथा लग जाण, बलि अशुभ जोग नीं पिछाण । हे मंडिपुत्र ! ए छठा गुणठाण लगै लही ।। ६. काइया णं भंते किरिया कइविहा पण्णत्ता? मंडिअपुत्ता! दुविहा पण्णत्ता,तं जहा१०. अणुव रयकायकिरिया य, दुप्पउत्तकायकिरिया य । (श०३।१३५) अनुपरतः- अविरतस्तस्य कायक्रियाऽनुपरतकायक्रिया, इयमविरतस्य भवति। (वृ०-५० १८१) *लय-आछे लाल रो देशी ३६२ भगवती-जोड़ Jain Education Intemational Education Intermational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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