Book Title: Bhagavati Jod 01
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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६६.
जिम आतम ऋद्धि लब्धि, इमहिज जाइयै ।
निज आत्म-किरिया करी॥
६६. 'आइड्ढिए' त्ति 'आत्मर्या' आत्मशक्त्याऽऽत्मलब्ध्या वा।
(वृ०-प०१८७) से भंते ! कि आयकम्मुणा गच्छइ ? परकम्मुणा गच्छइ ? गोयमा ! आयकम्मुणा गच्छइ, नो परकम्मुणा गच्छइ।
(श०३।१६७) ७०. से भंते ! कि आयप्पयोगेण गच्छइ? परप्पयोगेण
गच्छइ? गोयमा ! आयप्पयोगेण गच्छद, नोपरप्पयोगेण गच्छद।
(श०३।१६८) ७१. से भंते ! कि ऊसिओदयं गच्छइ? पतोदयं गच्छद?
७०.
इम
आत्म-प्रयोग, जावै ते सही।
नहीं पर प्रयोग अनुसरी ।।
७१.
ते भगवंत ! स्यूं जाय, 'ऊर्ध्व-पताक थी।
के पडी-पताकाकार छै? जिन कहै ऊर्ध्वपताक, पडी पताक पिण।
गति तसु बेहुं प्रकार छै ।। ते प्रभु ! 'एक-पताक, कै 'बेहुं-पताक नै।
___आकारै ते जाइये ।। जिन कहै एक-पताक, आकारे गति ।
बेहुं पताक न थाइये ।।
७३.
७२. गोयमा ! ऊसिओदयं पि गच्छइ, पतोदयं पि गच्छइ ।
(श०३।१६६) ७३. से भंते ! कि एगओपडागं गच्छइ? दुहओपडागं
गच्छइ? ७४. गोयमा ! एगओपडागं गच्छइ, नो दुहओपडागं गच्छइ।
(श०३।१७०)
७४.
GG
७५. 'एगओपडागं' ति एकतः-एकस्यां दिशि पताका यत्र तदेकतः पताक।
(वृ०-५० १८७,१८८) ७६. 'दुहओपडाग' ति द्विधापताक। (वृ०-प० १८८)
७७. से भंते ! कि वाउकाए? पडागा?
७७.
सोरठा एक दिशे अबलोय, ध्वजा-पताका छै जिहां । जिम दंड नै ध्वज जोय, तेह पताका एक थी। दुहओ पडाग देख, ते दंड ने बिहं दिशि विषै। केइ करै इम लेख, केइ कहै इक दिशि बेहं ।। *ते प्रभु ! स्यूं कहिवाय, वाऊकाय छ ।
के पताक कहियै सही? तब भाखै जिनराज, वाऊकाय ते।
पिण पताक निश्चै नहीं। रूपांतर क्रिय जाण, तस अधिकार थी।
प्रश्न मेघ नुं हिव करै ।।
७८.
७८. गोयमा ! वाउकाए णं से, नो खलु सा पडागा।
(श० ३।१७१) ७६. रूपान्तरक्रियाधिकाराबलाहकसूत्राणि।
(वृ०-५० १८८)
७६.
*लय—बे कर जोडी रे ताम
श०३, उ०४, ढा०६५ ३७६
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