Book Title: Bhagavati Jod 01
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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१७.
१८.
१६.
२०.
२१.
२२.
२३.
२४.
हे प्रभु! ते अणगार, पुद्गल लीधां विना, जितरा राजवही में रूप, ते विकुर्वी पना । बेभार-गिरि में पेस भेदी सम विषम करें,
,
तथा विषम सम करण, समर्थाई धरे ? जिन कहै समर्थ नाहीं आलावो दूसरो इमहिज णवरं पुद्गल लेइ समर्थ खरो । हे प्रभु ! माई कथाई प्रमादी विकुर्वे, अथवा अमाई अणगार नै विकुर्वणा हुवे ?
जिन कहै माई प्रमादी कपाई विकुर्वे, माईति ने तो विकुर्वण नहीं हु हे प्रभु! ते किण अर्थ कह्यो आप इण परे ? माई विकुर्व अमाई विकुर्वणा नहीं करे? जिन कहै माई प्रणीत पाण अरु भोजनं, गलत-स्नेह भोगवी वमन विरेचनं । वर्ष बलादिक अर्थ सरस भोजन करी, पुनः बलादिक अर्थ वमन रेचन परी ॥
कार्य
कर एह स्वभाव माईपणुं, इस वैक्रिय करण स्वभाव पिण छै माई तणुं । ते माई न सरस पाणी भोजने करी, हाड र हाड नी मींजा पुष्ट घनो खरी |
पातला लोही नै मंस हुवै छ तेहनां, प्रणीत रस थी पुष्ट मींजा अस्थि जेहनां । जे पण या योग्य बादर पुद्गल जेह वर्ण, ते पण परिण तास पंच इंद्रीपणं ॥ हाड मींजा केश मूंछ रोम बलि नखपणे, शुक्र शोणितपणे परिणमे द्रव्य सरस धर्म अमाई लूखो पण भोजन करि नहीं वर्म निरस भोजन जल करने हाड पुष्ट नहीं जमे || हाड ने हाथ नी मीज, तास पतली हवे मंस अन वलि रुधिर बहुल तसु अनुभव | जे पिण यथायोग्य बादर पुद्गल जेह तणै, ते परिणमै मल मूत्र जाव शोणितपर्ण ॥
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१७. अणगारे णं भंते! भाविअप्पा बाहिरए पोगले अपरियाइत्ता जावइयाई रायगिहे नगरे रुवाई एवइयाई विकुलिता भार तो अणुष्यविभत्ता पस वा विसमं वा करेत्तए ? विसमं वा समं करेत्तए ?
१८. गोयमा ! नो इणट्ठे समट्ठे ।
(श० ३११८८) एवं चैव वितिओ वि आलावगो नवरं परियातिइत्ता पभू । ( ० २०१०) से भंते! कि माई विकुव्वइ ? अमाई विकुब्वइ ? 'मायी' ति मायावान् उपलक्षणत्वादस्य सकषायः प्रमत्त इति यावत् । ( वृ०-५० १८६) १६. गोयमा ! माई विकुब्वइ, नो अमाई विकुब्बइ ।
(० २०१०) भंते! एवं बदमाई विकुब अमा विकु ?
२०. गोयमा ! माई णं पणीयं पाण-भोयणं भोच्चा-भोच्चा वामेति । प्रणीत
स्नेहमेत मन
करोति विरेचनां वा करोति वर्णबलाद्यर्थ, यथा प्रणीतभोजनं तद्वमनं च । ( वृ०-१० २०९) २१. विक्रियास्वभावं मायित्वाद् भवति एवं वैक्रियकरणमपीति तात्पर्य 'बहलीभवन्ति' घनीभवन्ति, प्रणीतसामर्थ्यात् । ( वृ०१० १०२) पाय-भोपमा
गं गं पण बहतीभवति,
२२. पयणुए मंससोणिए भवति । जे विय से अहावायरा पोग्गला ते वि य से परिणमंति, तं जहा- सोइंदियत्ताए जा फासिदि
२३. मावमं रोमनाए, मुक्कताए सोणियत्ताए । अमाई णं लूहं पाण-भोयणं भोच्चाभोच्चा णो वामेइ । तस्स णं तेणं लूहेणं पाण-भोयणेणं
२४.
मानवति पहले मंस-सीलिए जे वि य से अहावायरा पोम्गला ते वि य से परिणमंति, तं जहा- -उच्चारत्ताए पासवणत्ताए
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श०३, उ० ४, ढा० ६६ ३८३
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