Book Title: Bhagavati Jod 01
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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१६. तिण कालै नै तिण समय, म्हारै हुँतो छद्मस्थ काल।
दीक्षा लियां नै वर्ष ग्यारै थया, अंतर-रहित छठ-छठ न्हाल॥
१७. संजम तप करि आतमा, भावतो ते वसावतो सार । पूर्वानुपूर्वे
चालतो, ग्रामानुग्राम करतो विहार ।। १८. जिहां सुंसुमार पुर नामै नगर छै, जिहां अशोक वन खंड उद्यान ।
जिहां अशोक प्रवर सुवृक्ष छै, जिहां पृथ्वी-सिला-पट्ट जान ।। १६. तिहां हूं आयो तिण अवसरे, अशोक - तरु - तल जाण ।
पृथ्वी-सिला-पट्ट नैं विषै, अट्ठम-भक्त ग्रहीधरचोध्यान।। २०. जिन - मुद्राए बे पग संहरी, प्रलंबित-भुज लांबी बांहि ।
एक पुद्गल विषै दृष्टि स्थाप नै, नासाग्रे दृष्टि अर्थ मांहि ।।
१६. तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा ! छउमत्थकालि
याए एक्कारसवासपरियाए छठंछठेणं अणिक्खित्तेणं
तवोकम्मेणं १७. संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे पुव्वाणुपुचि चरमाणे
गामाणुगामं दूइज्जमाणे १८. जेणेव सुंसुमारपुरे नगरे जेणेव असोयसंडे उज्जाणे जेणेव
असोयबरपायवे जेणेव पुढवीसिलावट्टए १६. तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स
हेट्ठा पुढवीसिलावट्टयंसि अट्ठमभत्तं पगिण्हामि, २०. दो वि पाए साहटु वग्धारियपाणी एगपोग्गलनिविट्ठ
दिट्ठी
'वग्धारियपाणि' त्ति प्रलम्बितभुजः। (वृ०-५० १७४) २१. अणिमिसणयणे ईसिपब्भार गएणं काएणं, अहापणिहि
एहिं गत्तेहिं, सबिदिएहि गुत्तेहिं 'ईसिपब्भारगएणं' ति प्राग्भारः-अग्रतोमुखमवनतत्वम् ।
(वृ०-५० १७४) २२. एगराइयं महापडिमं उवसंपज्जेत्ता णं विहरामि ।
(श० ३।१०५)
२१. चक्षु भणी अटमकारव, आगल थकी थोडो नम्यों सुलक्ष ।
गात्र स्थाप्यूं यथावस्थितपण, सर्व-इंद्रिय-गुप्त प्रत्यक्ष ।।
२२. एक रात्रि नी महापडिमा प्रतै, अंगीकार करी विचरंत ।
भिक्खु-पडिमा ए बारमो, वारू धर्म शुक्ल चित शंत ।। २३. आख्यो अंक बत्तीस न देश ए, वारू सात पचासमी ढाल ।
भिक्षु भारीमाल ऋषराय थी, सुख संपति 'जय-जश' न्हाल ।।
ढाल : ५८
दूहा १. तिण कालै नै तिण समय, चमरचंचा अभिधान ।
राजधानी हुइ इंद्र बिण, पुरोहित-रहित पिछान ।। पूरण वाल तपस्वी तदा, दान-प्रव्रज्या देख । बार वर्ष पाली करी, मास संलेखण पेख ।।
साठ-भक्त अणसण प्रतै, छेदी नै करि काल।
चमरचचा रजधानीए, उपपात-सभा विशाल ।। ४. जाव इंद्रपणे ऊपनों, अधुनोत्पन्न चमरंद।
पंच पर्याप्ति करी हुओ, पर्याप्तो सुखकंद ।।
१. तेणं कालेणं तेणं समएणं चमरचचा रायहाणी अणिदा
अपुरोहिया यावि होत्था। (श०३।१०६) २. तए णं से पूरणे बालतवस्सी बहुपडिपुण्णाई दुवालसवासाई परियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए
अत्ताणं झूसेत्ता, ३. सठिं भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता, कालमासे कालं
किच्चा चमरचंचाए रायहाणीए उववायसभाए ४. जाव इंदत्ताए उववण्णे।
(श० ३।१०७) तए णं से चमरे असुरिदे असुरराया अहुणोववण्णे पंचबिहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छइ। (श० ३।१०८)
श०३, उ०२, ढा०५७,५८ ३४७
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