Book Title: Bhagavati Jod 01
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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३६.
कह्यो गति-विषय क्षेत्र नों अल्प बहपणं,
३३. सक्कस्स णं भंते ! देविदस्स देवरण्णो ओवयणकालस्स हिव अल्पबहुत्व गति काल नों देख।
य, उप्पयणकालस्स य कयरे कयरेहितो अप्पे वा? बहुए प्रभु ! शक नै ऊंचो नै नीचो गमनकाल,
वा? तुल्ले वा? विसेसाहिए वा? कुण थी अल्प बहु तुल्य विशेष? ३४. सर्व थी थोडो शक सरेंद्र ने, ऊंचो जावा - काल सुजेह। ३४. गोयमा ! सव्वत्यो सक्कस्स देविदस्स देवरणो उप्प
शकनी ऊंची घणी गति तिण सू, नीचो आवानों काल संखेज्ज गुणेह ।। यणकाले, ओबयणकाले संखेज्जगुणे। (श० ३।१२३) ३५. धर्मसीह कह्यो थोडी बेला माहै,
शक्र ऊंचो बहु जोजन जाय ।। जिम इक चिपटी' मांहै चोवीस योजन, हेठो बारै योजन इक चिपटी में आय ।। चमर - जेम शक नैं कह्यो तिम,
३६. चमरस्स वि जहा सक्कस्स, नवरं सव्वत्थोवे ओवयणणवरं सर्व थोडो नीचो आवा नों काल ।
काले, उप्पयणकाले संखेज्जगुणे। (श०३।१२४) नीची शीघ्र-गति तिण तूं काल थोडो छ,
संख्यातगुणो ऊंचो जावा नों न्हाल ।। ३७. वज्र नीं पूछा जिन दियै उत्तर, सर्व थोडो ऊंचो जावा नों काल। ३७. वज्जस्स पुच्छा नीचो आवा नों काल विशेषाधिक, गति मंद थी अद्धा अधिक निहाल ।। गोयमा ! सब्बत्थोये उप्पयणकाले, ओवयणकाले विसे
साहिए।
(श० ३।१२५) हिव तीनइ नी अल्पाबहत्व नों प्रश्न,
३८. एयरस णं भंते ! बज्जस्स, वज्जाहिवइस्स, चमरस्स य प्रभु ! वज्र शक बलि चमर नैं पेख ।
असुरिदस्स असुर रण्णो ओवयणकालस्स य, उप्पयणनीचो आवा नुं ऊंचो जावा न काल ते,
कालस्स य कयरे कयरेहितो अप्पे वा ? बहुए वा ? तुल्ले कुण थी अल्प बहु तुल्य विशेख?
वा? विसेसाहिए वा? ३६. जिन कहै शक नै ऊर्ध्वगमन-अद्धा, चमर नै हेठो ऊतरवा - काल। ३६. गोयमा ! सक्कस्स य उप्पयणकाले, चमरस्स य ओवयण
ए विहं तुला सर्व थी थोडो, निज स्थान बेहुं सम न्हाल ।। काले-एए णं दोगिण वि तुल्ला सब्वत्थोवा । ४०. शक नैं नीचो उतरवा न अद्धा, वज्र नै ऊंचो जावा न काल। ४०. सक्कस्स य ओवयणकाले, वज्जस्स य उम्पयणकाले
ए बिहुं तुल्य छै पूर्व कह्या थी, अथवा संख्यातगुणो संभाल ।। एस णं दोण्ह वि तुल्ले संखेज्जगुणे । ४१. चमर नै ऊंचो जावा - काल, वज्र नैं नीचो ऊतरवा - काल। ४१. चमरस्स य उप्पयणकाले, वज्जस्स य ओवयणकाले
ए विहं तुल्ये विशेषाधिक छै, ए अल्प बहुत्व तीन नी निहाल ।। एस णं दोण्ह वि तुल्ले विसेसाहिए। (श० ३।१२६) ४२. तीज शतक दूजा उद्देशा नो देशज, एक न साठमी ढाल रसाल ।
भिक्ख भारीमाल ऋषराय प्रसादै, 'जय-जश' संपति मंगलमाल ।।
ढाल : ६२
दूहा असुर-इंद्र तिण अवसरै, वज्र - भये विप्रमुक्त ।
अधिक शक्र अपमानिये, तुझ मूक्यो इम उक्त ।। १. एक चुटकी बजाने जितना काल
१. तए णं से चमरे असुरिदे असुर राया बज्जभयविप्पमुक्के,
सक्केणं देविदेणं देवरण्णा महया अवमाणेणं अवमाणिए समाण
श०३, उ०२, ढा०६१, ६२ ३५६
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