Book Title: Bhagavati Jod 01
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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१८. सुधर्म नामा कल्पविषे ते सुधमवतंसक सभा सुधर्मा सिंघासण, तिहां ते
१६.
जाव प्रधानज देव संबंधिया, भोग एहवो अध्यात्म चिंतित मन में, संकल्प
२०.
२२.
२१. हीणपुन्य चउदस नों अपनों
२३.
२४.
२५.
२६.
२७.
२८.
२६.
३०.
कुण रे एह अपत्थिय - पत्थए, मरण - वांछक दुरंत पंत दुष्ट लक्षण न घणी लज्जा लक्ष्मी
दिव्य प्रधान जे देव तणी ऋद्धि, जावत् देव तणों अनुभाव लाधो अम्है, बलि सन्मुख भोगविया में पुन, ते अल्प थोडो छै ओत्सुक्य जेहने, भोग इममितव सामानिक परषद नां, सुर एह कवण रे अपत्थ- पत्थए, जाव
काली बूली अमावस जायो । जेह भणी मुझ ए एहवा, एहवें रूप करि युक्त ताह्यो ।
ताम सामानिक परषद नां सुर, चमर हरष संतोष पाया मन अधिको, जाव
भोगवतो देख ऊपनों विशेख ||
१. चमरेन्द्र के मन में संकल्प उत्पन्न हुआ ।
विमान |
सुर-राजान ॥
तणी हियो
देदीप्यकाय व क्रोधे करि सामानिक बलै परषद नां ऊपना सुर नैं, बोले ह अहो सामानिक ! अमेरो एक अहो सामानिक! अछे अनेरो, चमर
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दिव्य प्रधान । पाम्यो सुविधान ।। मुझ ऊपर एह । भोगवतो विचरेह || तेजी कहिवाय भोगवै ताय ?
भोग
हाथ जोडी दश नख कर एकठा, मस्तक नैं विषे ताह्यो । सिर आवर्तन करी साचै मन, बलि अंजलि अधिकायो । जय-विजय करीनैं बधावी, बोले हे देवानुप्रिया ! एह । शक देवेंद्र देव न राजा यावत् ए विचरेह् ||
अपार ।
ताम चमरए वचन सुणी नैं, कोप्यो शीघ्र रूठो कोधन उदय यो अति रूद्र रूप हुआ तिणवार ॥
ने
विपरीत | रहीत ॥
सुरेंद्र
असुर
सुण वाय । विगसाय ||
विध
ताय । वाय ॥
सुरराय । इंद ताय ॥
१८. सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसए विमाणे सभाए सुहम्माए सक्कसि सीहाससि
१२. जादिव्वाई भोग भोगाई भुजमान पास पाविता इमेयारूये अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपज्जत्था
२०. केस एहरिगिरि परिवज्जिए
'दुरंतपंतलक्खणे' त्ति दुरन्तानि - दुष्टावसानानि अत एव प्रान्तानि - अमनोज्ञानि लक्षणानि यस्य स तथा । ( वृ० प० १७४) २१. हीणपुण्ण चाउट से जं णं ममं इमाए एयारूवाए 'ही पुन्नचाउदसे' त्ति हीनायां पुण्यचतुर्दश्यां जातो होनपुण्यचादेशः किल चतुर्दशी तिथिः पुष्पा जन्मा श्रित्य भवति सा च पूर्णा अत्यन्तभाग्यवतो जन्मनि भवति अत आक्रोशतयोक्तम् । ( वृ०० १७४) २२२२ए जान दिन्छे देवा भावे ल पत्ते अभियमाग उणि अणुस्सुए विवाई भोग भोगाई भुजमाणे विहरह
२४. एवं संपेहेइ संपेत्ता सामाणियपरिसोववण्णए देवे सहावे साता एवं बयासी केस एम देवाणलिया अपत्यपत्याए वाय दिव्वाई भोगभोगाई जमा बिहर ? (१० ३।१०६) २५. तए णं ते सामाणियपरिसोववण्णगा देवा चमरेणं असुरिदेणं असुररण्णा एवं बुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठ
जावया
२६. कर दस सिरसावतं मत्यए अंजलि
कट्टु
२७. जएणं विजएणं वद्भावेति, वृद्धावेत्ता एवं क्यासी-एस गं देवापिया ! सक्के देवि देवराया व दिव्वाई भोगभोगाई जमाणे विहर ( ० २०९१०) २८. तए से चमरे असुरिदे असुरराया तेसि सामाजियपरिसोवा देवागं अंतिए एमट्ठे सोना निसम्म आसुरुते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए
२६. मिसिमिसेमाणे ते सामाणियपरिसोववण्णगे देवे एवं वयासी
३०. अण्णे खलु भो ! से सक्के देविदे देवराया, अण्णे खलु भो ! से चमरे असुरिदे असुरराया,
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श ३, उ० २, ढा०५८ ३४६.
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