Book Title: Bhagavati Jod 01
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 373
________________ ३४. सोरठा च्यार तीर्थ नै सार, वंछ हित सुख पथ्य शिव । लक्षण एह उदार, विशिष्ट समदृष्टी तणां ।। *तिण अर्थे करि गोयमा ! सनतकुमार सुरराय । भवसिद्धियो जाव चरिम छै, अचरिम कहिये नांय ।। ३५. 'तिण अर्थे करि गोयमा ! सनतकुमार सुरराय। ३५. से तेपट्टेणं गोयमा ! मणकुमारे देविदे देवराया ३५. से तेणट्टेणं गोयमा ! सणंकूमारे णं देविदे देवराया भवसिद्धिए जाब चरिमे नो अचरिमे। (श० ३।७३) ४२. सोरठा 'सनतकुमार सुरराय, देवभवे चिउं तीर्थ नों। हित प्रमुख कहिवाय, वांछ छै इहां इम कह्यो ।। केइ अज्ञानी धार, कहै पाछल भव नैं विषै। च्यार तीर्थ नैं आर-पोख्या तिण सू इंद्र हुओ।। इहां आख्यो वर्तमान, सुर भव केरी वारता। पिण पाछिल भव नी जान, न कही सनतकुमार नीं। पाछिल भव नी जाण, पूछा ईशाण-इंद्र नी। तीजे शतक पिछाण, प्रथम उद्देश पाठ' ए।। किण्णालद्धे आद, पाठ कह्या छै सूत्र में। किण करणी ऋद्धि लाध, पूर्वभव में कुण तो।। कवण नाम कुण गोत, कवण ग्राम नगरे हुंतो। जाब सन्निवेसे होत, एहवी पूछा छै तिहां ।। तीजे शतक पिछाण, दूजै उद्देशै बली। चमर पूर्वभव जाण, त्यां पिण एहवा पाठ छै ।। अठारमै शतक सोहंद, दूजे उद्देश वली। पूरवभव सक इंद, त्यां पिण एहवा पाठ छै ।। सुबाहु मृगापूत, विपाक माहै वारता। प्रश्न पूर्वभव सूत, त्यां पिण एहवा पाठ है ।। शुक्र चंद्रमा सूर, पूरवभव बहुपुत्तिया। पुफिया उपंग पंडर, जाव शब्द में पाठ ए।। इत्यादिक बहु ठाम, पूर्वभव नां पाठ ते। इहां नहि आख्या नाम, देखो ज्ञान दृष्टे करी।। सनतकुमार अधिकार, एहवा पाठ कह्या नहीं। तिण सूं पूर्वभव विस्तार, नहीं छै सनतकुमार नों।। ए वर्तमान-भव बात, पत्थ-काम दुख-त्राण ए। हित विशेष आख्यात, पिण इहां पत्थ ते आहार नहि ।। *लय-शीतल जिन शिवदायका १. ईसाणेणं भंते ! देविदेणं...किण्णा लद्धे? किण्णा पत्ते? किण्णा अभिसमण्णागए ? के वा एस आसि पुब्वभवे ? किनामए वा? किंगोत्ते वा ? कयरंसि वा गामंसि वा नगरंसि वा जाव सण्णिवेसंसि वा?... (श० ३।३०) ३४० भगवती-जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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