Book Title: Bhagavati Jod 01
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 367
________________ ८. ε. १०. ११. १२. १३. १४. १५. १६. १७. * चतुर नर ! कडुआ क्रोध विपाक । ( ध्रुपदं ) इण अवसर बलिचंचा तणा रे, रहिण बाला देवी देव । तामली बाल-तपस्वी प्रतं रे काल गयो जाणी स्वयमेव ॥ ईशाण कल्प ऊपनो, इंद्रपण अवलोय । महा शीघ्र कोप क्रोध उदय थी, रुद्र रूप प्रगट ही जोय ॥ देदीप्यमान क्रोध अग्नि थी, बलिचंचा विच होय । उत्कृष्टी गति कर आविया, जाव भरतक्षेत्र जिहां जोय ।। तामलिप्ति नगरी जिहां तामली तणों तिहां आये दावा पग वर्ण, दोरडी बांध माय तीन बार के मुख में विषं नामली नगरी सिंघोडा नैं आकारे स्थान छै, त्रिक चउक चच्चर कहिवाय ।। चोमुख महापथ पंथ में, उरहो परहो घींसाल । मोर्ट मोट शब्दे करी, करे उदघोषणा विणकाल || अहो लोको ! एकुण किसो, पोते लिंग ग्रह्मो अपचंद तामली प्रव्रज्या गुरु विना, किसो ईशाण सुर-इंद? इम कही तामली नां तनु भणी जात्यादि दोष निर्द तास मनै शरीर । भीर ॥ हीलंत । करी, वच स्वसाये खिसंत ॥ गरहा लोक साखे करी, करै अवज्ञा अपमानंत । तजें अंगुली करि शिर भणी, हस्तादि करितात ।। करें सर्व श्री कदर्थना, अतिही व्यथा उपजाय पीसी एकांत म्हाखी करी आया जिग दिशि जाय ।। * लय — भविक जन ! लोभ बुरो संसार ३३४ भगवती-जोड़ Jain Education International ८. चारागाहने अर कुमारा देवाय देवीओ य तामलि बालतवस्सि कालगतं जाणित्ता, ६. ईसाणे य कप्पे देविदत्ताए उववण्णं पासित्ता आसुरुत्ता राकृविया डिकिया 'आसुरुत्ता: ' शीघ्र कोपविमूढबुद्धयः, 'कुविय' त्ति जातकोपोदयाः 'चंडक्किय' त्ति प्रकटितरौद्ररूपाः । (०१०१६७) १०. मिसिमिसेमा बनिबंचाए रायहागीर मज्मण निग्गच्छंति, निम्गच्छित्ता ताए उक्किट्ठाए जाव जेणेव भारहे वासे 'मिसिमिसेमाणे' त्ति देदीप्यमानाः क्रोधज्वलनेनेति । (१०० १६७) ११. जेणेव तामलित्ती नयरी जेणेव तामलिस्स बालतव स्सिस्स सरीरए तेणेव उवागच्छंति, वामे पाए सुंबेण बंधति, १२, १३. तिक्खुत्तो मुहे निहंति, तामलित्तीए नगरीए सिंघाडग-तिग- चउक्क-चच्चर- चउम्मुह महापह पहेसु कवि करेमाणा महवा-महवा स उग्घोसेमाणा उग्घोसेमाणा एवं वयासी १४. केस णं भो ! से तामली बालतवस्सी सयंग हियलिंगे पाणामाए पव्वज्जा ए पव्वइए ? केस णं से ईसाणे कप्पे ईसाणे देविदे देवराया ? १५. इति 'कट्टु तामलिस्म बालतवस्सिस्स सरीरयं हीलंति निदति खिसंति 'होलेंति' त्ति जात्याद्युद्घाटनतः कुत्सन्ति, 'निदति' त्ति चेतसा कुत्सन्ति 'खिसंति' त्ति स्वसमक्षं वचनैः कुत्संति । ( वृ० प० १६७) १६. गरति अवमण्णंति तज्जेति तालेति 'गति' सिलोकसमक्षं कुत्सत्व 'अवमन्यति' ति अवमन्यन्ते – अवज्ञाऽऽस्पदं मन्यन्ते, 'तज्जिति' त्ति अंगुलीशिरश्चालनेन 'तालेति' ताडयन्ति हस्तादिना । ( वृ० प० १६७) करेंति होता जाव आकड्ढ विकडिं करेत्ता एगते एडंति, एडेत्ता जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया। १०. पति आडविक For Private & Personal Use Only (180212) परिवति'ति सर्वतोदयन्ति पति' त्ति प्रव्यथन्ते प्रकृष्टव्यथा मिवोत्पादयन्ति 1 (२००१६०) www.jainelibrary.org

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