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इहां कह्यो-ग्रहस्थावास छोड्यो, इंद्रिय नों दमणहार, पंच सुमतिवंत, तीन गुप्तिवंत, ज्ञान दर्शण चारित्र सहित एहवा साधु तेहनै एतले नामै करी बोलाविये। तिण में माहण नाम साधु नों आयो ते भणी माहण नाम श्रावक नो नथी। अनै इहां बीच में सर्व ठिकाण अन्य नाम नी अपेक्षाए वा शब्द को जिम च शब्द किहांक तो अन्य वस्तु नी अपेक्षाय अनै किहांक च शब्द एक वस्तु नों दूजो नाम छ । ते नामंतर नी अपेक्षाय नवमा तीर्थकर ना बे नाम छै—सूविध अनै पुष्पदंत, लोगस्स में एहवू पाठ छै___ 'सुविहं च पुष्पदंत' नबमा सुविध च पुनः वलि दूजो नाम पुप्फदंत । इहां एक तीर्थकर ना दूजा नाम नी अपेक्षाय च शब्द का । तिवारे कोइ कहै—पुष्प जिसा दांत ते माटै पुष्फदंत कह्या, पिण सुविध नो पुष्पदंत बीजो नाम नथी। तेहनों उत्तर-ठाणांग ठाणे २ उ०४ दोय तीर्थकर नो श्वेत वर्ण कह्यो-चंद्रप्रभ अनै पुष्पदंत । इहां सुविध नो नाम पुष्पदंत कह्यो।
तथा भगवती शतक २० उदेशै ८ सू०६७ में कह्यो ते पाठ...इमीसे ओसप्पिणीए कति तित्थगरा पण्णत्ता? गोयमा ! चउवीसं तित्थगरा पण्णत्ता तं जहा--
उसभ १ अजिय २ संभव ३ अभिनंदण ४ सुमति ५ सुप्पभ ६ सुपास ७ ससि ८ पुष्पदंतहसीयल १० सेजस ११ वासुपूज्ज १२ विमल १३ अणंत १४ धम्म १५ संति १६ कुंथु १७ अर १८ मल्लि १६ मुणिसुब्वय २० नमि २१ नेमि २२ पास २३ बद्धमाणा २४ ।
अथ इहां चउबीस तीथंकरांना चउबीस नाम कह्या । तिहां नवमां तीर्थकर नो पुष्पदंत नाम कह्यो। जिम तेवीस तीर्थकर ना २३ नाम तिम नवमां तीर्थकर नो पुष्पदंत नाम जाणवो । तथा हेमी नाममाला प्रथम कांडे नवमा तीर्थकर ना बे नाम कह्या । सुविधिस्तु पुष्पदंतो। इहां प्रथम सुविधि नाम अनै पुष्पदंत बीजो नाम कह्यो । जिम चंद्रमा नी पर प्रभा–सौम्य लेश्या जेहनी ते चंद्रप्रभ आठमा तीर्थकर नो गुण-निप्पन्न नाम, तिम पुप्फ नी कली नी परै मनोहर दांत जेहना ते पुष्पदंत, ए पिण नवमा तीर्थंकर नुं गुण-निप्पन्न बीजू नाम जाणवू । ते माटै लोगस्स में सुविहि च पुप्फदंत ए नवमा तीर्थकर ना बे नाम कह्या। अनै बीजा नाम नी अपेक्षाय च शब्द कह्यो। तिमहिज समणं वा माहणं वा साधु रा ए बे नाम घणे ठिकाण कह्या छ। अनै बीजा नाम नी अपेक्षाय समुच्चय अर्थ नै विष वा शब्द जाणवो। तथा भगवती शतक २० उ०२ में जीव रा २३ नाम कह्या छ, तिहां सर्व ठिकाण अन्य नाम नी अपेक्षाय वा शब्द कह्यो छै। तथा तीन प्रकारे ऊरण हुवै ठाणांग ठाणे ३ उ०१ में क ह्यो, तिहां तीजा बोल नों एहवो पाठ कह्यो छकेति तहारू वस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतियं एगमवि आरिय धम्मियं सुवयण सोच्चा णिसम्म कालमासे काल किच्चा अन्नय रेस देवलोएम देवत्ताए उबवण्णे । तए ण से देवे त धम्मायरियं दुभिक्खाओ वा देसाआ सुभिक्खं देसं साह रेज्जा, कंताराओ वा णिकतार करेज्जा, दोहकालिएण वा रोगातकेण अभिभूतं समाणं विमोएज्जा तेणावि तस्स धम्मायरियस्स दुप्पडियारं भवति ।
(ठाणं ३।१८७) अथ इहां कह्मो-तथारूप श्रमण माहण कनै धर्ममय एक पिण सुवचन सुणी धारी देवता थई ते धर्माचार्य रो कष्ट मेट तो पिण ऊरण नहीं हवै। इहां माहण शब्द नों अर्थ टब्बा में ब्राह्मण कियो अन उत्तराध्येयन अ०२५ में पंच महाव्रत
श०२,उ० ५, ढा०४४ २८७
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