Book Title: Bhagavati Jod 01
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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३. किमिदं भंते ! समयखेत्ते त्ति पवुच्चति ? समयः-कालस्तेनोपलक्षितं क्षेत्र समयक्षेत्र, कालो हि दिनमासादिरूपः।
(वृ०-५० १४६)
*प्रभुजी जशधारी। (ध्रुपदं) ३. प्रभु ! समयक्षेत्र स्यूं कहियै ? समय काल भणीज सद्दहियै हो। ते दिवस मासादिक रूप, ऋतु हेमंतादि तद्रूपं हो।
गोयम गुणधारी। (ध्रुपदं) ४. जिन भाखै द्वीप अढ़ाई, वलि दोय समुद्र धुर आई।
इतो समयक्षेत्र ए कहिये, अद्धा दिवस मासादिक लहिये ।। ५. रवि गति थी भूम ऊपर जानं, ओ तो मनुष्य-क्षेत्र में मान ।
मनुष्य-क्षेत्र रै वारं, नहि चन्द्र सूर्य नो चारं ।। त्यां ए जंबद्वीपज नाम, ए तो द्वीप अछै अभिराम। सर्व द्वीप समुद्रां मांय, अभितर ए कहिवाय ।। इम जीवाभिगमे जाणं, सह वक्तव्यता पहिछ। णं । जाव अभितर पुक्ख रार्द्ध लहिई, ज्योतिषि वार्ता नहिं कहिई।।
४. गोयमा ! अड्ढाइज्जा दीवा, दो य समुद्दा, एस णं एवइए
समयखेत्तेति पवुच्चति। (श० २।१२२) ५. सूर्यगतिसमभिव्यङ्गयो मनुष्यक्षेत्र एव न परतः, परतो
हि नादित्याः संचरिष्णव इति । (वृ०-५० १४६, १४७) ६. तत्थ णं अयं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीव-समुद्दाणं सव्वब्भं
तरे।
७. एवं जीवाभिगमवत्तव्वया नेयव्वा जाव अभितरपुक्खरद्धं जोइसविहूणं।
(श०२।१२३)
८. वाचनान्तरे तु 'जोइसअट्ठविहूणं' ति इत्यादि बहु दृश्यते।
(वृ०-५० १४७)
सोरठा ८. अन्य वाचना मांहि, जोइसअट्ठविहूणं इसो।
पाठ दीसै छै ताहि, एहवं आख्यो वृत्ति में। . ज्योतिषि ते रवि शशि जाणं, तेहनी संख्या पहिछाण ।
ते जीवाभिगम मझार, ते वर्जी इहां विचार ।। १०. जिन समय बादर बिजु गाज, बादल नै अग्नि समाज।
आगर निहि नइ ग्रहण रवि चारं, नहि अयन अढी द्वीप बारं ।।
११. बीजा शतक नों नवमों उद्देश, कह्यो क्षेत्र विस्तार सूलेश । ते अस्तिकाय नों देश, हिवै अस्तिकाय कहेस ।।
द्वितीय शते नवमोद्देशकार्थः ।।२।६।।
१०. अरहंत समय बायर विज्जू, थणिया बलाहगा अगणी। आगर निहि नइ उबराग निग्गमे वुड्ढिवयणं च ॥
(वृ०-५० १४७) ११. अनन्तरं क्षेत्रमुक्तं तच्चास्तिकायदेशरूपमित्यस्तिकायाभिधानपरस्य दशमोद्देशकस्यादिसूत्रम्
(वृ०-प० १४७)
१२. प्रभु ! केतली कही अस्तिकाय ? अस्ति शब्दे प्रदेश कहाय।
तसं काय-राशि छै सोय, ते अस्तिकायज होय ।।
१२. कति णं भंते ! अत्थिकाया पण्णत्ता?
अस्तिशब्देन प्रदेशा उच्यन्तेऽतस्तेषां काया-राशयोस्तिकायाः।
(वृ०-प० १४८)
अथवा अस्ति निपात है, कहै काल त्रिहं तास । थयो अछे थास्यैज ए, काय प्रदेशज-राश ।।
१३. अथवाऽस्तीत्ययं निपातः कालत्रयाभिधायी,ततोऽस्तीति
सन्ति आसन् भविष्यन्ति च ये काया:-प्रदेश राश
यस्तेऽस्तिकाया इति। (वृ०-प० १४८) १४-१६. गोयमा ! पंच अत्थिकाया पण्णत्ता, तं जहा
धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए आगासत्थिकाए, जीव
१४. *जिन कहै पंच अस्तिकाय, धर्मास्तिकाय कहाय।
अधर्मास्तिकाय है बीजी, आगासत्थिकाय छ तीजी ।।
*लय-खटमल मेवासी
श० २, उ०६, १०, ढा०४६ ३०५
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