________________
साधुसाध्वी ढांक कर सूतु तथा ऊनी मुहपत्तिसे बांध देवे और झोलीमें रख कर ठवणी ऊपर रख देवे, बादमें शेष रहे अन्य ॥१०॥ साधु खमा० देकर कहें 'इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी पडिलेहणा पडिलेहवोजी'।
बाद सब साधु एक खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग० ! मुहपत्ति पडिलेडं ?' इच्छं इच्छामि खमा० देके है * मुहपत्ति पडिलेहें, खमा० देकर 'इच्छा०संदि० भग! ओहिपडिलेहण संदिसाउं?' इच्छं इच्छामि खमा० 'इच्छा०
संदि० भग० ! ओहिपडिलेहण करूं ?, इच्छं' कह कर खडे पगोंसे बैठ कर गुरु तथा अपने बडे साधुओंकी शेष है, उपधि पडिलेह कर अपनी तमाम उपधि पडिलेहे, उनमें पहले कंबल बाद अनुक्रमसे चद्दर-पांगरणी-उत्तरपट्टा-| संथारिया-आसन आदि कपडे तथा पाट वगेरह २५-२५ बोलसे. दंडा तथा दंडासण १०-१० बोलसे पडिलेहे है। बाद एक साधु उपाश्रयमें काजा निकाल कर एक जगह इकट्ठा कर उसको जुदा जुदा करके अच्छी
तरह देख लेवे, यदि जूं वगेरह कोई जीव हो? तो लेकर एकांत किसी वस्त्रादिकमें रख देवे, बाद काजा सूपडी12 में लेकर एकांत भूमिमें "अणुजाणह जस्स गो" कह कर छटा छटा परठ कर “वोसिरे ३" कहे, बाद उपाश्रय
के आस पास सौ सौ (१००) हाथ भूमिमें वसति संशोधन करे, यानी भूमिको नजरसे देखे, यदि कोई |
XXXX*XXX#ST
१०
४
Jain Education Internet
Education intern
0 1005
For Private & Personal use only
lww.jainelibrary.org