Book Title: Avashyakiya Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhimuni, Buddhisagar
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya

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Page 26
________________ साधुसाध्वी || उपरा उपरी बिछादेवे, बाद समेटी हुई नीचेवाली मुहपत्ति पडिलेहकर समेटके बिछाई हुई मुहपत्तिमें | ॥२२॥रखे बाद ऊपरवाली समेटी हुई मुहपत्ति पडिलेहे, उससे सवेरेकी तरह १३ बोलसे स्थापनाचार्य पडिलेहकर पहलेकी समेटी हुई मुहपत्ति पर रखदेवे, ऊपरसे वह दूसरी मुहपत्तिभी समेटकर ढांक देवे, बाद सूत्र तथा ऊनी दोनों मुहपत्तियोंसे स्थापनाचार्य बांधकर झोलीमें रखकर ठवणी ऊपर रख देवे । है। बाकी रहे सवजणे खमा० देकर 'इच्छकारी भगवन् ! पसायकरी पडिलेहणा पडिलेहावोजी' ऐसे कहें। | है। बाद सबजणे खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग०! मुहपत्ति पडिलेहुं ?, इच्छं' कहकर मुहपत्ति पडिलेहें, फिर खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग०! सज्झाय संदिसाऊं ?, इच्छं' इच्छामि खमा० 'इच्छा० संदि०भग०! सज्झाय करूं ?, इच्छं' कहकर १ नवकार धम्मो मंगलकी ५ गाथा और ऊपर १ नवकार गिणे, दो (१) वांदणे देकर मुट्ठिसहि पचक्खाण करे. खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग० ! ओहिपडिलेहण संदिसाऊं ?, इच्छं इच्छामि खमा० 'इच्छा० संदि० भग० ! ओहिपडिलेहण करूं ?, इच्छं' कहकर चद्दर कंवली आदि सब ॐ ॥ २२ ॥ (१) उपवास के दिन वांदणे नहीं देने । Jain Education Interne ww.jainelibrary.org For Private & Personal use only 010_05

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