Book Title: Avashyakiya Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhimuni, Buddhisagar
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya

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Page 122
________________ साधुसाध्वी ॥११८॥ " बारहवत तथा सर्व तपस्या उच्चारण विधिः Xआवश्य0000*ROS कीय विचार प्रथम नंदीकी स्थापना करनी, जो विस्तारसे नंदी करनी हो तो मुद्रित लघुदीक्षा विधिमें लिखित | संग्रहः नंदी विधिकी तरह दश दिक्पालोंका आहानादि करना, और सामान्य पणे करना हो तो स्थापनाचार्य के 2 आगे बाजोट ऊपर पांच साथिये करके ऊपर एक अथवा पांच श्रीफल रखे, ज्ञान पूजा करे, पीछे बारह-21 व्रतग्राही वा तपस्याग्राही अंनलीमें चांवल, श्रीफल रोकड नाणुं लेकर स्थापनाचार्यके सामने चारों दिशामें 2 एक एक नवकार गिणता हुआ तीन प्रदक्षिणा देकर चांवल श्रीफलादि स्थापनाचार्यके सामने रखे, बाद खमासमण देकर इरियावही पडिक्कमे, पीछे खमा० देकर (१) मुहपत्ति पडिलेहके दो वांदणे देवे और खमा० देकर कहे 'इच्छा कारेण तुम्हे अम्हं (२) सम्मत्तसामाइय सुयसामाइय देसविरइसामाइय आरोवणियं / (१) यहां पर मुहपत्ति पडिलेहण, बांदणे तथा नंदी करढावणी काउस्सग्ग विधिप्रपा नहीं है। (३) समकित विना बारह व्रत नहीं उबरेजाते वास्ते समकित सहित बारह व्रत उचरने हो तो यह आदेश बोले, केवल समकित ना हो तो आदेश लेते समय 'मम्मत्तसामाइय सुयसामाइय' कहे, जिसने समकित पहले लिया हो वह केवल देशविरतिका मादेश XXNXCABINEXT M ॥१८॥ Jain Education Intern 2010-05 For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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