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साधुसाध्वी वंदन देना, सिर्फ जहां जहां व्रतोंका का नामहै वहां वहां सर्वत्र जो तपस्या उचरी हो उसका नाम लेना है। आवश्य॥ १३२ ॥ इतनी ही विषेशताहै।
कीयविचार | पीछे खमासण देके 'इच्छा करेण तुम्हे अम्हं समत्तसामाइय सुयसामाइय देसविरइसामाइय थिरीकरणत्या
संग्रहः काउसग्गं करोमि?, इच्छं सम्मत्तसामाइय सुयसामाइय देसविरइसामाइय थिरीकरणत्थं करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थ०' कहके पहले की तरह एक लोगस्सका काउस्सग्ग करके प्रगट लोगस्स कहे, पीछे शक्ति अनुसार पञ्च
खाण करे, समय होवे तो खमासमण देके 'इच्छा०तुम्हे अम्हं धम्मोवएसं देह' कहके उपदेश सुणे, फिर *खमासमण देके कहे 'विधि करतां अविधि आशातना हुइ होय ते सवि हुं मन वचन कायाए करी मिच्छामि । दुक्कडं' ॥ इति बारहव्रत तथा सर्व तपस्या उच्चारण विधि समाप्त ॥
तपस्या पारण विधिः-तपस्या पूर्ण हुए बाद ज्ञानपूजादि करके इरियावही पडिक्कमे बाद खमासमण देके मुहपत्ति पडिलेहे, दो वांदणा देकर खमासमण देके कहे 'इच्छाकारण तुम्हे अम्हं अमुगतवं पारावेह ॥ १३२ ॥ गुरु कहे ' पारावेमो' पीछे तप पारनेवाला इच्छं खमासमण देके कहे ' इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं अमुगा ।
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