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साधुसाध्वी
॥१३४॥
HX-XXX-XXX
सूचना-पृष्ट २६ पंक्ति ५ की टिप्पणी जोकि टाइपके अनवकाशसे वहां देनी रह गई थी सो यहां दी जाती है।
आवश्य" दाऊण वंदणं तो, पणगाइसु जईसु खामए तिनि । किइकम्मं करि आयरि-यमाइ गाहातिगं पढइ सट्टो ॥ १॥"
कीय विधि
टिप्पणी
योगशास्त्र टीका चतुर्थ प्रकाश । अर्थः- बंदिन या पगामसिजाए कहे बाद बांदणे देके पांच आदि साधुओंमें तीनको अभ्भुडिया खमावे, फिर बांदणे देके | "सहो" नाम श्रावक "आयरिय" आदि तीन गाथा पढे ( बोले )।
योगशास्त्र छपानेवालोंने उपरोक्त गाथामें से "सद्रो" शब्द निकाल दिया है परन्तु खुद श्री हीरविजयसूरिजी लिखते है कि-हमने योगशास्त्र टीका की जूनी छ प्रतिये देखी हैं उनमें सबमें यह गाथा "सद्रो" शब्द युक्त ही है, देखो वह पाठ यह है-“योगशास्त्रवृत्तिजीर्ण-10 पुस्तकषट्कं विलोकितं, तत्र सर्वत्रापि " काऊण वंदणं तो" इति गाथायाः पाठः 'सट्टो' इति पदेनैव संयुक्तो दृश्यते" हीरप्रश्न तृतीय प्रकाश १४५ मा प्रश्न ।
SAARALANIM.04.2014 BLEEMIDL4418222131314141414BALLUMIN14.4813114 MAA14A14SALAD
॥ इति संविज्ञ साधु-साध्वी आवश्यकीय विधि संग्रहः समाप्तः ॥
FRAMAMAAL AHARAPE
॥३१४॥
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