Book Title: Avashyakiya Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhimuni, Buddhisagar
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
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साधुसाध्वी
॥ १२१ ॥
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आवश्य
उसके बाद नमुत्थणं० कहकर खडा होके आगे लिखे मुजब आदेश बोलता हुआ एक एक नवकारका काउसग्ग करके नमोऽर्हत्० कथन पूर्वक एक एक थुइ कहे, अंतिम काउस्सग्गमें चार लोगस्स और एक दकीय विचार नवकारका चितवन करे, आदेश आदि बोलनेका क्रम इस मुजब है - श्रीशांतिनाथ देवाधिदेव आराधनार्थं संग्रह: | करेमि काउस्सग्गं, वंदणवत्तियाए० अन्नत्थ०, थुइ - रोगशोकादिभिर्दोष-रजिताय जितारये । नमः श्रीशांतये तस्मै, विहितानंतशांतये ॥५॥ श्रीशांतिदेवता आराधनार्थ करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ०, , थुइ-श्रीशांतिजिनभक्ताय, भव्याय सुखसंपदं । श्रीशांतिदेवता देया - दशांतिमपनीय मे ॥ ६ ॥ श्रुतदेवता आराधनार्थं - करेमि काउरसग्गं अन्नत्थ०, थुइ - सुवर्णशालिनी देयात्, द्वादशांगी जिनोद्भवा । श्रुतदेवी सदामा मशेषश्रुतसंपदं ॥ ७ ॥ भवनदेवता आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ०, थुइ-चतुर्वर्णाय संघाय, देवी भवनवासिनी । निहत्य | दुरितान्येषा, करोतु सुखमक्षतं ॥ ८ ॥ क्षेत्रदेवता आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ०, थुइ-यासां क्षेत्रगताः संति, साधवः श्रावकादयः । जिनाज्ञां साधयंतस्ता, रक्षंतु क्षेत्रदेवताः ॥ ९ ॥ अंबिकादेवी आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ०, थुइ - अंबा नहतडिंचा मे, शुद्ध बुद्ध सुतान्विता । सिते सिंहे स्थिता गौरी, वितनोतु समी
॥ १२१ ॥
2010 05
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