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साधुसाध्वी
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- विधिपडिक्कमकर खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग० ! चैत्यवंदन करूं ?, इच्छं' कहकर चैत्यवंदन कहे और
कहकर पत्यवदन कह और संग्रहः किंचि० तथा नमुत्युणं० अरिहंत चेइयाणं० आदि कहकर पडिक्कमणे की तरह चार थुइसे देववंदन करे, फिर नमुथुणं० तथा अरिहंत चेइयाणं० आदि कहकर चार थुइसे देववंदन करे, बाद नमुत्थुणं० जावंति चेइयाई (१) जावंत केविसाहू० नमोऽर्हत्० कहकर स्तवन कहे, बाद जय वीयराय० ! कहकर फिर नमुत्युणं कहकर खमा० . देकर अविधिआशातना खमावे ॥
२२ -मंडली-रचना-विधिःपूर्व या उत्तर दिशा के सामने मुख करके मंडलीबद्ध बैठकर पडिक्कमणा वगेरह करना चाहिये, मंडलीकी रचना श्रीवत्स के आकारकी होती है"आयरिया इह पुरओ, दोपच्छा तिन्नि तयणु दो तत्तो। तेहिं पि पुणो इक्को, नव गणमाणाइमा रयणा॥१॥
(१) "समा० देकर जांवत केविसाहू नमोऽहत् कहकर स्तवन कदे, बाद फिर नमुत्थुणं भादि जय वीयराय ! तक कहे" यहमी चैत्यवंदन वृहद्भाध्य में लिया है।
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2010_05
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