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संग्रहः
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साधुसाध्वी तिमिरतराणि" का २, मंदिरमें ३, पञ्चक्खाण पारनेका ४, सवेरको आहार करे बाद ५, देवसी पडिक्कमणकी आवश्य॥ १७ ॥शुरुआतका ६, संथारा पोरिसी भणाते समय ७, ये सात चैत्यवंदन साधु साध्विओंको हमेशां करने चाहिए। कीय विचार
५-सवेरे पडिलेहण करे बाद १, संध्या की पडिलेहणके बीचमें २, देवसी पडिक्कमणेके अंतमें अथवा ।। पञ्चक्खाण पारती वखत ३, राइ पडिक्कमणेकी शुरुआतमें ४, इस तरह दिनमें चारवार सज्झाय करने की है। | ६-जिन जिन क्रियाओंमें पालखी लगाके बैठनेका न होवे किंतु उभे पगोंसे बैठनेका होवे अथवा ।
खडे रहनेका होवे उन क्रियाओंमें आसनको ओघेसे एक तरफ हटा देना, परंतु उसके उपरही न रहना ।। ४ ७-लौकिक टीपणेके अनुसार श्रावण महीना बढजाय तो आषाढ चौमासीसे पचासमें दिन दूसरे ४ श्रावण सुदी चौथको संवच्छरी पडिक्कमणा करना, भादवेमें शास्त्र विरुद्ध अस्सी (८०) में दिन नहीं करना ।
८--यदि भादवे दो होवे तो आषाढ चौमासीसे पचासमें दिन पहले भादवे सुदी चौथको संवच्छरी 5 पडिक्कमणा करना परन्तु दूसरे भादवेमें अस्सी (८०) दिने नहीं करना ।
९--लौकिक टीपणेमें संवच्छरीकी चौथका यदि क्षय होवे तो आगम सम्मत पंचमीके दिन और "
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॥१०॥
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201005