Book Title: Avashyakiya Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhimuni, Buddhisagar
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 119
________________ साधुसाध्वी ॥११५॥ संग्रहा १२-जो किसीको भी न अडा हो वह दो वार स्नानसे शुद्ध होसकताहै। आवश्य कीय विचार १३-व्याये पीछे १५ दिन बाद भेसका दूध, १२ दिन बाद गायका दूध, ८ दिन बाद बकरीका / दूध पीना कल्पताहै, पहले नहीं। | १४-जन्म तथा मरणके सूतकवाले घरमें १२ दिनतक साधु आहार पाणी नहीं वहोरे और उस घरका जल तथा अग्नि भी देवपूजा में वापरना नहीं। १५-नीशीथ सूत्रके सोलमे उद्देशेके भाष्यमें जन्म मरणके सूतकवाला घर दुगंछनीय (चमारादिके । घर जैसा घृणाजनक) होनेसे आहार पाणी लेने आदिके लिये निषिद्ध बतायाहै, देखो यह रहा वह पाठ-४ । “दुविहा दुगंछिया खलु, इत्तरिआ हुंति आवकहिया य। एएसिं नाणत्त, वुच्छामि आणुपुठवीए ॥१॥ सूअगमयगकुलाई, इत्तरिया जे हवंति निज्जूदा । जे जत्थ जुंगिआ खलु, ते इंति आवकहिआओ ॥२॥ तेसु अण्णवत्थाई, वसही विपरिणामो तहेव कुच्छाय । तेसिपि होह कुच्छा, सव्वे एयारिसा मन्ने ॥३॥ इति भाष्यं, अत्रचूर्णिव्याख्या-सूचग० गाहा, ('इत्तरिआ') कालावहिए जे ठप्पा कया ते निज्जूढा, भक्तपानग्रहणादौ निषिदाः१. आवकहिगा-जे कुला जत्थ विसए जात्यादि जुंगिआ-दुगंछिआ अभोज्या इत्यर्थः " ।।११५॥ ख www.sainelibrary.org Jain Education Intel For Private & Personal Use Only 2010_05

Loading...

Page Navigation
1 ... 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140