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साधुसाध्वी है किसी अवयव ऊपर यदि रुधिरादिक न लगा हो तब तो असज्झाय नहीं होता, परन्तु रुधिरादिक लगा हो तो जबतक खड़ा रहे तबतक असज्झाय ।
॥ १०६ ॥
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प्रकीर्णक- विचार -
१ - एक पहोर रातवीते वहां तक देवसी पडिकमणा करना कल्पता है, और आवश्यक चूर्णिके अभिप्रायसे उग्घाडा पोरिसीका वखत होवे वहांतक तथा व्यवहार सूत्रके अभिप्रायसे दो पहोर दिन चढे वहांतक राइ पडिकमणा करना कल्पता है ।
२–
- 'सिद्धाणं बुद्धाणं' में की " चत्तारि अट्ठ दस दोय वंदिया" यह गाथा बोलते हुए शरीरको इधर | उधर घुमाना नहीं ।
३ – पडिकमणा आदि हरएक क्रियामें जो कोईभी सूत्र बोलना वह इधर उधर चित्त रखके अस्त व्यस्त पणेसे नहीं बोलना, किंतु संपदा आदिका उपयोग रखकर शुद्ध उच्चारण पूर्वक बोलना । ४ -- सवेरे राइ पडिक्कमणेकी शुरुआत में "जय उसामि" का १, राइ पडिक्कमणेके अंत में " परसमय
2010_05
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कीय विचार
संग्रह:
।। १०६ ।।
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