Book Title: Avashyakiya Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhimuni, Buddhisagar
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya

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Page 82
________________ संग्रहः साधुसाध्वी के ये पुरुषोंके लियेहें, स्त्रियोंके तो दो हाथोंकी ३-३, मुखकी ३, और दो पगोंकी ३-३, मिलाकर १५ आवश्य॥ ७८॥ पडिलेहणे अंगकी होतीहैं। कीय विचार ७–उपकरण विचार ( साधुके १४ उपकरण)१-पात्रे (पातरे)-जिस पात्रेके गोलाइकी परिधि तीन (३) वेंत और चार ( ४ ) अंगुल होवे वह । मध्यम पात्रा, जिसकी परिधि इससे कमती होवे वह जघन्य और जिसकी परिधि इससे अधिक होवे वह उत्कृष्ट | पात्रा कहाताहै, जो बराबर गोल होवे टेढामेढा न होवे एवं जिसमें छिद्र (फांडा) या गांठ अथवा खरदराश || न होवे वैसा पात्रा रखना चाहिये, क्योंकि ओघनियुक्ति आदि ग्रंथों में ऐसे अपलक्षण वाला पात्रा नुकसान है दायी कहाहै । २ पात्रबंधन (झोली )-पात्रोंके प्रमाणसे होतीहै, यानि पात्र छोटे या मोटे जो होवे उनको /// झोलीमें बांधके गांठ लगाने पर चार अंगुल छेडे बाकी रहें उतनी बडी करनी चाहिये । ३ पात्रस्थापन-वह कहाताहै जो विहारादिके समय झोलीमें बांधे बाद पात्रोंके नीचली तरफ ऊनी वस्त्रका टुकडा बांधा जाताहै, जिसके चारों खुणे डोरी लगी रहतीहै, यह लंबा चौडा ( समचोरस ) १६ अंगुल होताहै । ४ गुच्छा-वह ॥७८ ॥ कक-4XXXXX Jain Education Interne 2010-05 For Private & Personal Use Only ww.jainelibrary.org

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