Book Title: Avashyakiya Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhimuni, Buddhisagar
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya

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Page 103
________________ NAGA साधसाध्वी मध्यम असल्झाय । यदि सूर्य उदयके बाद ( १ ) ग्रहण लगकर उसी दिन में छूटजाय तो उस दिन आवश्यरातका ही असज्झाय होताहै, दूसरे दिनका सूर्य उदय हुए बाद नहीं। कीय विचार ४-निर्घात ( विजली का पडना) (२) तथा गुंजित (३) होवे तो १ अहोरात्रि असल्झाय। || संग्रह ५-सूर्यके उदय तथा अस्त होनेके पहले १-१ घडी और पीछे भी १-१ घडी मिलकर २-२ घडीकी और मध्याव (मध्यदिन-दुपहर) तथा आधी रातको २-२घडीकी ये चार संध्या (कालवेला) कहातीहें, इनमें भी अस० । ६-आसोज तथा चैत्र सुदि पांचमके दुपहर बाद कार्तिक तथा वैशाख वदी एकम तक अस० ७-आषाढ तथा कार्तिक चौमासी पडिकमणा किये बाद श्रावण तथा मगसिर वदी एकम तक अस० पिछली दोनों असज्झायोंमें कार्तिक, मगसिर , वैशाख तथा श्रावण वदी एकम ये चारों महापडवा कहाती ८-फागण चौमासीमें होलि मंगलावे (सलगावे ) वहांसे लगाके जबतक धूलेटी (धूलसे रमना) (१)-प्रहण सहित उदय होकर कुच्छ देरके बाद यदि छूटजाय तो उसदिन तथा रातकाही मसज्माय समझना चाहिये || " (२)बादले हो चाहेन होवे व्यंतर देवताने किये हुए गर्जारवकोभी 'निर्घात' कहतेहैं। (३)-गर्जारव होनेके पीरही जो गुंजता एमालूब जोरसे गुंजारव होवे यह गंजित' कहाताहै। R RARA __JainEducation inteman 2010_05 For Private & Personal use only www.sainelibrary.org

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