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साधुसाध्वी
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और एक चद्दर लंबाइमें साढेतीन हाथ और चौडाईमें अढाई हाथ होतीहै, ऐसे प्रवचनसोराद्धार तथा ओघ- आवश्यनियुक्ति और उनकी टीकामें लिखाहै, परंतु श्रीजिनपतिसूरिजीमहाराजने पंचलिंगीकी टीकामें लिखाहै कि-कीय विचार गीतार्थोंकी आचरणासे आजकल इतने प्रमाणके चद्दर कंबल आदि कल्प नहीं रखे जाते, क्योंकि ऐसे कल्पोंसे || संग्रहः शरीर बराबर न ढंकनेके कारण अच्छी तरह निर्वाह नहीं हो सकता (१), इस वास्ते संख्या(गिनती) में और लंबाई-चौडाईमें अधिक भी रख सकतेहैं । ११ रजोहरण (ओघा)-चोवीस अंगुलकी दंडी और आठ अं-12 गुलकी दसियां ( फलियां ) दोनों मिलकर बत्तीस अंगुलका लंबा ओघा होना चाहिये, यदि दंडी ज्यादा लंबी || हो तो दसियां कमती करना और यदि दंडी कमती लंबी होवे तो दसियां अधिक लंबी करनी चाहिये, लेकिन । दंडी और दसियां दोनों मिलकर ओघेकी लंबाई बत्तीस अंगुलसे ज्यादा न होनी चाहिये, इससे यह जानना कि-ट्रॅढिये लोग जो बहुत लंबा ओघा रखते हैं वह शास्त्र विरुद्धहै, ओघेकी दसियां गांठ विनाकी (२) रखना शास्त्रकारोंने कहाहे, वास्ते दसियोंके गांठ लगानाभी शास्त्र विरुद्धहै । १२ मुहपत्ति-एक वेंत और चार अंगुल
(१) देखो मुद्रित पंचलिंगी वृहद्वृत्ति । (२) "अमुसिरं-अग्गथिला दशिका निषद्या च यस्य तदपिरम्" ओघनियुक्तिवृत्तिपत्र २१०
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