Book Title: Avashyakiya Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhimuni, Buddhisagar
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 84
________________ साधुसाध्वी तीन रखने, यदि कुच्छ थोडासा बारीक व छिदरा कपडा होवेतो चौमासेमें छः सीयालमें पांच उन्हालेमें चार * आवश्य॥८॥ रखने, और यदि ज्यादा बारीक व छिदरा कपडा होवेतो चौमासेमें सात, सीयालेमें छः, उन्हालेमें पांच पडले काय विचार संग्रहः रखने चाहिये, तीन तरहके बतानेका मतलब यहहै कि-सब पडलोंके पट मिलाने पर उतनी जाडाइ होनी | चाहिये कि जिनको आंखों पर लगानेसे सूर्यकी किरणेंभी देखनेमें न आवें । एक एक पडलेकी लंबाई अढाई अढाई हाथ और चौडाई ३६-३६ अंगुल यानी डेढ डेढ हाथ होनी चाहिये । ७ रजस्त्राण-पात्रके चारों तरफ विटोलने पर चारों तरफसे चार चार अंगुल पात्रके भीतर कपडा चलाजाय उतना बडा होना चाहिये, इससे // यह मालूम होताहै कि-पहले एक एक पात्रका रजस्त्राण जुदा होताथा, परंतु आज कलतो रजस्त्राणके वास्ते| एक कपडा रखाजाताहै, जिसका एक एक पट एक एक पात्रके बीचमें डाला जाताहै, वहभी लंबाई व चोडाइमें आखी जोडके सज जावे उतना बडा होना चाहिये, ये सात उपकरणतो पात्रों के हैं, इनके सिवाय शरीर । संबंधी सात उपकारण इस प्रकार: ८-९-१० तीन कल्प (ओढनके कपडे)-दो तो सूतु चद्दर और एक ऊनी कंबल अथवा दो कंबल OCESSE6 SAGARALACESSAGAR Jain Education Inter Kol12010_05 For Private & Personal use only vww.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140