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साधुसाध्वी ॥ ६३॥
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लाकर बहरावे वह ' अभ्याहृत ' दोष ११, घृतादिकके कूडले आदिके मुखपर लगी हुई मट्टी वगैरह आवश्यउखेड कर बहरावे, अथवा जो हमेशां नहीं खोले जाते वैसे मजबूत बंध किये हुए कमाड खोलकर बहरावे कीय विचार वह 'उद्भिन्न' दोष १२, जिसके पगथिये न हों वैसी मेडी उपरसे उतार कर बहरावे, अथवा भूमिघरमें 8 संग्रह से निकाल कर और दोनों एडियां ऊंची करके अगूठों पर खडे रहकर अथवा पाटला वगैरह लगाकर जिस । मेंसे चीज उतारसके वैसे शिके उपरसे उतार कर अथवा बडी पेटी तथा कोठे आदिमेंसे बाहर निकाल कर और जहां पर नजर न पहुंचे तथा जहां रही हुई चीज भी बडी मुश्किलसे लेसके वैसे ऊंचे आले अथवा बारीमेंसे लेकर बहरावे वह 'मालापहृत' दोष १३, मालिककी इच्छा बिना दूसरा ( गाम आदिका स्वामी-घरका मालिक तथा चौर आदि ) कोई जबरदस्तिसे खोसकर वहरावे वह 'आच्छेदय ' दोष १४, जिसके बहुत मालिक हों अथवा एक मालिकने अपने बहुत नौकर-चाकरोंके वास्ते खेत आदिमें जो आहार भेजा हो अथवा जो हाथीके लिये बनाया हो वैसा आहार सब मालिकोंकी इच्छा बिना और ॥३॥ उनकी गेर हाजरीमें वैसेही सब नोकर चाकरोंकी तथा महावत और हाथ के मालिक राजा आदिकी ।
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