Book Title: Avashyakiya Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhimuni, Buddhisagar
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya

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Page 78
________________ साधुसाध्वी ॥७४॥ XEXXXXXXXXXXX देनेवालेकी निंदा करे वह 'धूम्र' दोष ४, विना कारण (१) आहार-पाणी करे वह 'अकारण ' दोष ५, ये आवश्यमंडलीके पांच दोषहैं, इनको टालकर अच्छी क्रियामें वर्तनेवाले साधु-साध्विओंको आहार करना चाहिये। ।कीय विचार संग्रहा ६-मुहपत्ति-पडिलेहण-विचारउत्कटिक आसन (खडे पगों) से बैठकर मुहपत्ति खुल्ली करके " सूत्र अर्थ साचो सद्दई १" ऐसा बोलता हुआ अपने सामनेका पसवाडा देखे १, बाद मुहपत्ति पलटके “सम्यक्त्वमोहनीय-मिथ्यात्वमोहनीय-12 मिश्रमोहनीय परिहरु ३-४” ऐसा बोलताहुआ दूसरा पसवाडा देखकर तीन पुरिम करे, यानि मुहपत्तिको तीन वरे || A (१)- भूख मिटाने के वास्ते १, आचार्य-उपाध्याय-बालक-वृद्ध-तपखी-बीमार आदिकी वेयावच्च (सेवा-भक्ति ) करनेके लिये २/ बाइरियासमितिकी शुद्धिके वास्ते ३, संजम पालनेके वास्ते ४, जीवितव्य (आयुष) की रक्षाके वास्ते ५, सूत्र तथा अर्थ चिंतनरूप धर्मध्या नको स्थिर करनेके लिये ६, इन छः कारणोंसे साधु-साध्वी आहार-पाणी करें। इसी तरह आहार न करनेकेभी छः कारणहैं, वे इस मुजबहैंबुखार (ताव ) आदि कोईभी रोग होने पर १, देवता-मनुष्य तथा तिर्यंचोंके किये हुए उपसर्ग होने पर २, भूख सहन करनेके वास्ते ३/ विषय विकारको दबाकर ब्रह्मचर्य (शीलवत ) की रक्षाके लिये ४, वर्षा वरसती हो, धूंअर पडती हो, रस्तेमें देडके अलसिये आदि त्रस जीव || S अधिक उत्पन्न हुए हों तो उनकी विराधना न होने के वास्ते ५, आयुषका अंतिम समय नजीक मालूम होनेपर अनशन आदि करने के लिये ६ IM७४॥ आहार पाणी न करें। XॐॐॐॐॐॐॐEBOX Jain Education Intel 2010-05 For Private & Personal use only Xilwww.jainelibrary.org

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