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साधुसाध्वी पट्टा पहर कर खडा रहे वह 'लंबोत्तर' दोष ८, स्तनोंको चौलपट्टेसे ढांक दे. यानि स्तनों से उपर चोल- आवश्य॥५४॥ पट्टा पहिरकर खडा रहे वह 'स्तन' दोष ९, गाडीकी ऊधीके मुताबिक पगकी दोनों एडियां मिलाकर कीय विचार
अँगूठे जुदे जुदे रखकर अथवा दोनों अँगूठे मिलाकर एडियां जुदि जुदि रखकर खडा रहे वह 'शकटोधि , संग्रहा का' दोष १०, साध्वीकी तरह दोनों खंधोंके उपर कपडा ओढकर खडा रहे वह 'संयति' दोष ११, . लगामकी तरह ओघा आगे रखकर खडा रहे अथवा लगाम सहित घोडेकी तरह शिर (मस्तक) ऊंचा , नीचा करे वह 'खलिन' दोष १२, कागडे की तरह आंख इधर उधर हिलावे वह 'वायस' दोष १३, जू आदिके भयसे कोठके फलकी तरह गोल आकारसे शरीर के कपडे लपेट कर जंघा आदिके बीच में दबाकर खडा. रहे वह 'कपित्थ' दोष १४, भूत लगे हुए मनुष्यकी तरह शिर घूमाता हुआ खडा रहे वह ' शीर्वोत्कंपित | दोष १५, दूसरे को किसी कामकी मना करनेके लिये मूंगेकी तरह 'हुं हुं' ऐसा शब्द करे वह 'मूक' दोष १६, ६ लोगस्स अथवा नवकारकी गिणतीके लिये अंगुलि अथवा भ्र (भोपण) हिलावे वह 'अंगुलिका-भ्रु' दोषी
ॐ ॥५४॥ ६१७, भट्ठी उपर पकते हुए शराब की तरह 'बुड बुड' शब्द करे अथवा शराब पीये हुए मनुष्यकी तरह है
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