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साधुसाध्वी * अपने आत्माको पूछे कि- १३ दिन कम एक महीना यानि १७ उपवास तू करसकता है ?, नहीं, यदि आवश्य॥५८॥
इतना भी नहीं कर सकता है तो क्या चौतीस भक्त (१६ उपवास) करसकता है ?, नहीं, इसी प्रकार बत्तीस ||कीय विचार भक्त (१५ उ०), तीस भक्त (१४ उ०), अट्ठाइस भक्त (१३ उ०), छव्वीस भक्त (१२ उ०), चौवीस संग्रह भक्त (११ उ०), बाईस भक्त (१० उ०), वीस भक्त (९ उ०), अट्ठारे, भक्त-अट्ठाही (८ उ०), सोले । भक्त (७ उ०), चौदह भक्त (६ उ०), बारे भक्त (५ उ०), दशम भक्त (४ उ०), अहम (३ उ०) है, छह (२ उ०), चउत्थ भक्त (१ उ०), आयंबिल-निवी-एकलठाणा-एकासणा-बियासणा-अवऽढ-पुरिमऽह है - साढपोरिसी-पोरिसी-नमुक्कारसहि करसकता है !, इसी तरह अपने जीवको पूछकर शक्ति मुजब जो है, पञ्चख्खाण करना हो वह मनमें धारकर काउस्सग्ग पारलेवे। | इस छम्मासी तपचिंतनके विचारमें यह खयाल रखना कि-जो पञ्चक्खाण अपने से न बन सके उसके लिये तो यह उत्तर विचारना कि-" यह पञ्चक्खाण मेरेसे नहीं बन सकता"। और जो पञ्चक्खाण । कर तो सकता है परन्तु उस दिन वह पञ्चक्खाण करने का भाव न हो तो ऐसा विचारना कि-" यह पञ्चक्खाण
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