Book Title: Avashyakiya Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhimuni, Buddhisagar
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya

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Page 60
________________ SAXE साधुसाध्वी RECASSRO अप्पकिलंताणं बहुसुभेण भे दिवसो (१) वइकतो' इतने तक कहे, बाद 'जत्ता भे' का 'ज' धीरे स्वरसे आवश्यबोलते हुए दोनों हाथ ओघेकी दशिओं पर लगाकर अपने ललाट की तरफ हाथ लेजाते हुए बीचमें मध्यम कीय विचार संग्रहः (नहीं धीरा और नहीं ऊंचा, ऐसे) स्वरसे 'ता' बोलकर 'भे' ऊंचे स्वरसे बोलते हुए दोनों हाथ ललाटके लगावे, यह चौथा आवर्त हुआ, इसी तरह पांच में और छठे आवर्त में भी 'जवणि' और 2 जं च भे' का 'ज' तथा 'ज' धीरे स्वरसे बोलते हुए ओघेकी दशिओंके हाथ लगाकर अपने ललाट की 21 तरफ हाथ लेजाते हुए बीचमें 'व' तथा 'च' मध्यम स्वरसे बोलकर 'णि' तथा 'भे' ऊंचे स्वरसे बोलते हैं। हुए दोनों हाथ अपने ललाटके लगावे, वाद 'खामेमि खमासमणो देवसियं (२) वइक्कम' कहकर खडा | होजावे और आसनके पिछली तरफ जाकर खडा हुआही 'अवस्सियाए पडिकमामि खमासमणाणं देवसि-II आए (३) आसायणाए' से लगाकर 'वोसिरामि' तक संपूर्ण सूत्र कहे । फिर दूसरी वार 'इच्छामि खमा (१)-राइमें 'राइवरकता' पख्खीमें 'पक्खो वकतो''चौमासी में चोमासी वइकता' संवच्छरीमें 'संवच्छरो वखतो' कहे। (२)-राइमें- 'राइयं' पख्खी में 'पख्खियं' चौमासी में 'चोमासीयं' और संवच्छरीमें 'संवच्छेरीयं' कहना। (३)-राइमें 'राइयाए' पख्खीमें 'पख्खियाए' चौमासीमें 'चोमासियाए' और संवच्छरीमें 'संवच्छरियाए' कहना। Jain Education Inter 2010-05 For Private & Personal use only ellww.jainelibrary.org

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