Book Title: Avashyakiya Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhimuni, Buddhisagar
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya

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Page 47
________________ 45 साधुसाची अभ्भुट्टिया खमा, बाद 'इच्छा० संदि० भग० ! पक्खियं आलोउं ? ' इच्छं आलोएमि जो मे पक्खिओ है ।। ४३ ॥ कहकर "सव्वस्स वि पक्खिय” इत्यादि कहें। फिर दो वांदणे देकर 'इच्छा० संदि० भग० !' राइयं आलोइयं संग्रहः पडिकतं पत्तेयखामणेणं अभ्भुडिओमि अभ्भितर पक्खियं खामेउ' ? इत्यादि जिसतरह पक्खी आदि पडि. कमणों में खमाते हैं उसी तरह पत्तेयखामणेणं अभ्भुट्टिया खमावे, दो वांदणे देकर 'इच्छा० संदि० भग० !|| राइयं आलोइयं पडिक्कतं पक्खियं पडिक्कमावेह' कहे, गुरु. कहे-'पडिक्कमेह' बाद 'इच्छं' कहकर करेमि भंते ! 8 तथा "इच्छामि पडिक्कमिउं जो मे पक्खिओ०" कहे, बाद पक्खी, चौमासी अथवा संवच्छरी समाप्त मुहपत्ति ६ पडिलेहकर दो वांदणे देवें और समाप्त खामणेणं अभ्भुठिया खमावें, बाद खमा० देकर “पियं च मे जं भे" इत्यादि ४ खामणे खमावें, बाद 'इच्छकारी भगवन् ! पसायकरी पक्खी, चौमासी या संवच्छरी तप प्रसाद करावोजी' ऐसा कहें, बाद गुरु पक्खी, चौमासी, संवच्छरीके लेखे-१-२-३ उपवास' इत्यादि कहें।। राइ वांदणे देकर दो खमा० देवे और "इच्छकार सुहराइ” कहें, खमा० देकर राइ अम्भुट्टिया खमावें, वांदणे देकर पञ्चख्खाण करें, बाद दो खमा० देकर 'बहुवेल संदिसाउं? बहुवेलकरूं?' ऐसा कहें ॥ NAGARGACAX Jain Education Intern KAI2010-05 For Private & Personal use only ww.jainelibrary.org

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