Book Title: Avashyakiya Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhimuni, Buddhisagar
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya

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Page 51
________________ आधुसावी || ४ लोगस्सका काउस्सग्ग करे, पारके प्रगट लोगस्स कहे । फिर खमा० देकर इसी तरह 'खुद्दोवदव ओहडाव॥ १७॥ ||णऽत्थं' काउस्सग्ग ४ लोग्गस्स का करे, पारकर प्रगट लोगस्स कहे । फिर खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग० ! || संग्रहः || सक्काइ वेयावच्चगर आराहणऽत्थं काउसग्ग करूं ?, इच्छं सकाइ वेयावञ्चगर आराहणऽत्थं करेमि काउस्सग्गं । अन्नत्थ०' कहकर ४ लोगस्सका काउसग्ग करे, पार कर प्रगट लोगस्स कहे, खमा • देकर इच्छा० संदि० भग० ! सज्झाय संदिसाउं' ? इच्छं इच्छामि खमा० 'इच्छा० संदि० भग० ! सज्झाय करूं ?, इच्छं' कहकर गोडोंसे बैठकर १ नवकार तथा दशवैकालिक के " धम्मो मंगल" आदि तीन अध्ययन कहकर ऊपर एक नवकार गिणे, खमा० देके अविधि आशातना खमावे । २० लोच करने व कराने का विधिःगुरु के आगे इरियावही पडिकमकर खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग० ! लोच मुहपत्ति पडिलेहुं ? 13 इच्छं, कहकर मुहपत्ति पडिलेहे और वांदणे देवे, खमा० देकर कहे- 'इच्छा० संदि० भग० ! लोच संदिसाउं?'2 II गुरु कहे- 'संदिसावेह ' 'इच्छं इच्छामि खमा०' देकर कहे- 'इच्छा ० संदि० भग० ! लोच कराउं? - ॥४७॥ - - Jain Education in II 2010_05 For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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