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साधुसाध्वी ॥४५॥
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पडिलेहे और वांदणे देवे, खमा० देकर कहे-'इच्छा० संदि० भग० ! सज्झाय निख्खिQ? ' गुरु कहे 'निक्खिवह बाद 'इच्छं' कह कर खमा० देकर केह- 'इच्छा० संदि० भग० ! सज्झाय निख्खिवणऽत्यं काउसग्ग करूं? गुरु कहे- 'करेह' बाद 'इच्छं सज्झाय निख्खिवणऽयं करोमि काउस्सग्गं , अन्नत्थ०' कहकर १ नवकारका काउस्सग्ग करे, पारकर प्रगट नवकार १ कहे, फिर खमा० देकर अविधि आशातना खमावे ॥
१९-सज्झाय-उत्क्षेप-विधिः| कार्तिक वदी तथा वैशाख वदी एकम के बाद जिस दिन अश्विनी, भरणी, रोहिणी, आर्द्रा, पुष्य, अश्लेषा.. मघा, पूर्वा फाल्गुनी, हस्त, स्वाति, अनुराधा, मूल, पूर्वाषाढा, श्रवण, शतभिषक्, उत्तरा भाद्रपद तथा रेवती || इनमें से कोई भी नक्षत्र होवे ?, और गुरुवार या सोमवार होवे ? उस दिन, अथवा मंगलवार और शनि-|| वार को छोड़ कर चाहे जिस वार के दिन कपडे धाकर उपासरेमें से काजा निकालकर परठे और वसति | संशोधन करे, जो कोई हाडका या कलेवर होवे ? उसको दूर हटवाकर उपासरेमें आकर सब जणे इरिया-2॥४५॥ वही पडिक्कमें, बादमें वसति संशोधन करने वाला खमा० देकर कहे 'इच्छा० संदि० भग०! वसति पवेउं ? ||
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2010_05
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