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साधुसाध्वी
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खामेउं ? इच्छं खामोम पक्खियं (१) "एगस्स पख्खस्स, पनरसण्हं दिवसाणं, पनरसण्हं राईणं, जं किंचि अप्पत्ति| यं" इत्यादि पहले गुरु खमा लेवे बाद शिष्यभी पख्खी चौमासी और संवच्छरीमें अनुक्रमसे गुरु आदि तीन पांच और सात साधुओंको इसी तरह खमावे, इसमें यह खयाल रखना कि - पक्खी चौमासी और संवच्छरी तीनोंमें अनुक्रमसे तीन पांच और सात साधुओंको खमाते हुए अंतमें कमसे कम दो साधु बाकी रखने
वइक्कता - चोमासियं वइक्कमं चोमासियाए आसायणाय " । संबच्छरीमें- “सवच्छरो वइकंतो-संवच्छरियं वइक्कमं- संवच्छरियाए आसा यणाए " । इस तरह तीनों जगह पर उपयोग रख कर पक्खी, चौमासी वा संवच्छरी जो होवे ? उसका नाम बोलना ।
(१) चौमासीमै - " चोमासियं खामेउं ? इच्छं खामेमि चोमालियं " कहकर यदि चार [४] महिनों का चौमासा होवे ? तो " चउ. हूं मासाणं, अट्टहं पक्खाणं वीसुत्तरसय [१२० ] राइंदियाणं " कहकर "जं किंचि मपत्तियं " आदि कहे, और यदि पांच [५] म| दोनोंका चौमासा हो ? तो " पंचण्डं मासाणं, दसवहं पख्खाणं, पन्नासुत्तरस्य [ १५० ] राइंदियाणं " कहकर " जं किंचि अपत्तियं" आदि कहे, संवच्छरीमे- “संवच्छरियं खामेउं ? इच्छं खामेमि संवच्छरियं " कहकर जिस वर्षमे १२ महिने हुए होवे ? उस वर्ष में "बारसण्डं मासाणं, चडवसण्डं पक्खाणं, तिन्निसय लट्ठि [ ३६० ] राइंदियाणं " कहकर " जं किंचि अपत्तियं " आदि कहे और जिस वर्ष में १३ महिने हुए हो ? उस वर्ष में " तेरसण्हं मासाणं, छब्बीसण्हं पख्खाणं, तिन्निसयनउई ( ३९०) राईदियाणं कहकर "जं किंचि अप्पात्तयं " कहे। पत्तेय ब्रामणेणं और समाप्त खामणेणंमें भी इसी मुजब समझना
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विधि
संग्रह:
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