Book Title: Avashyakiya Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhimuni, Buddhisagar
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 40
________________ ॥ ३६ ॥ ० साधुसाध्वी है काउस्सग्गं जो मे पक्खिओ० तस्स उत्तरि० अन्नत्थ० कहकर १२ लोगस्सका (१) काउसग्ग करे, पारकर प्रगट लोगस्स कह कर पख्खी समाप्त मुहपत्ति पडिलेहे, दो वांदणे देवे, बाद 'इच्छा • संदि • भग ० समाप्त खामणेणं अभ्भुट्टिओम अभिभंतर पख्खियं खामेउं ? इच्छं खामेमि पख्खियं ' इत्यादि पहलेकी तरह गुरु खमा लेवे बाद शिष्यभी पक्खी, चौमासी और संवच्छरीमें अनुक्रम से गुरु आदि तीन पांच तथा सात साधुओंको खमावे | बाद ' इच्छा० संदि० भग० ! पख्खी समाप्त खामणा खामुं?' ऐसा पहले गुरु बोल जाय पीछे शिष्य भी इसी मुजब कहे, बाद गुरु कहे। | मुजब ४ खामणे खमावे. खामेह ' शिष्य ' इच्छं ' कहकर आगे लिखे - Jain Education Interna 4 खमा० देकर गोडोंसे बैठा हुआ डाबे हाथसे मुहपत्ति मुखपर लगाकर जीमणा हाथ गुरुके सामने ओघेके उपर स्थापन कर “इच्छामि खमासमणो पियं च मे जं भे" इत्यादि पहला खामणा पूरा कहे, बाद गुरु कहें- “तुम्भेहिं समं” दूसरा खमा ० देकर "इच्छामि खमासमणो पुव्वि चेहयाई वंदित्ता” इत्यादि दूसरा (१) चौमासी में २० लोगस्स का और संवच्छरीमें ४० लोगस्स तथा ऊपर एक नवकारका काउसग्ग करना । 2010 05 For Private & Personal Use Only विधि - संग्रह: ॥ ३६ ॥ www.jainelibrary.org.

Loading...

Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140