Book Title: Avashyakiya Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhimuni, Buddhisagar
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya

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Page 41
________________ साक्षसाची खामणा कहे, बाद गुरु कहे- "अहमवि वंदामि चेइयाई "। तीसरा खमा ० देकर " इच्छामि खमासमणो ॥३७॥ अभ्भुडिओमि तुभ्भण्हं संतियं” इत्यादि तीसरा खामणा कहे, बाद गुरु कहे- “ आयरिय संतियं " । चौथा - खमा० देकर "इच्छामि खमासमणो अहमवि पुव्वाई" इत्यादि चौथा खामणा कहे, बाद गुरु कहे "नित्थारग पारगा होह" बाद खड़े होकर कहे- 'इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी पक्खी तप (१) प्रसाद करावोजी | गुरु कहे 'पुन्यवंतो ! पक्खीने (२) लेखे १ उपवास, २ आयंबिल, ३ निवी, ४ एकासणा, ८ बियासणा, वे हजार सज्झाय करी १ उपवासनी पयठ पूरजो' । जिन्होंने उपवास किया हो ? वे तो कहें-'पयडिओ अन्य सब जणे कहें - 'तहत्ति '। बाद गुरु कहे- 'पक्खियं (३) समत्तं, देवसियं भणिज्जाहि ' सब जणे कहें- 'इच्छामो अणुसहि। (१)-चौमासी अथवा संवच्छरी हो? तो उनका नाम लेना । (२) चौमासी में - "चौमासी ने लेने २ उपवास, ४ आयंबिल, निवि, ८ एकासणे, १६ बियासणे चार हजार सज्झाय करी बे उपवासनी पयठ पूरजो" ऐसा कहे। संवच्छरी में-"संवच्छरी ने लेने ३२ उपवास, ६ आयंबिल, ९ निवी, १२ एकासणे, २४ बियासणे छ हजार सज्झाय करी तीन उपवासनी पयठ पूरजो ऐसा कहे । (३) चौमा-4॥३७॥ मासी में "चौमासियं समत्तं" और संवच्छरीमें "संवच्छरियं समत्तं" कहना । XXXX******XXARX*XX* Jain Education Intern I ll 2010_05 For Private & Personal use only Cailww.jainelibrary.org

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