Book Title: Avashyakiya Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhimuni, Buddhisagar
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya

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Page 31
________________ साधुसाध्वी 11 2011 Jain Education Intern यह अथवा “सुयदेवयाए भगवई०" यह थुइ कहे, बाकी सबजणे थुइ सुणकर काउस्सग्ग पारें, बाद 'खित्त देवयाए करेमि काउस्सग्गं' अन्नथ० कहकर १ नवकारका काउस्सग्ग करे, पारकर नमोऽर्हत्० कहकर - "यासां क्षेत्रगताः संति, साधवः श्रावकादयः । जिनाज्ञां साधयंतस्ता, रक्षंतु क्षेत्रदेवता ॥१॥ " यह थुइ अथवा "जीसेखित्ते साहु०" यह थुइ कहे, बाद सबजणे पारकर प्रगट १ नवकार कहें, बैठकर छट्टे आवश्ककी मुहपत्ति पडिलेहकर २ वांदणे देवे, गुरु 'इच्छामो अणुसट्ठि' कहकर गोडों से बैठकर अथवा डाबा गोडा ऊंचा करके | आसन उपर बैठकर नमोर्हत्० कहकर " नमोऽस्तु वर्द्धमानाय " (१) की एक गाथा कह देवे बाद सबजणे 'नमो खमासमणाणं नमोऽर्हत्०' कहकर " नमोऽस्तु वर्द्धमानाय" की ३ गाथा कहें। बाद गुरु खमा० देकर यदि स्तवन खुदही बोलें ? तो 'इच्छा० संदि० भग० स्तवन भणुं ?, कहें और यदि अन्य साधु या श्रावकको आदेश देवें ? तो 'इच्छा० संदि० भग० स्तवन सांभलं' कहें, बाद सब जणे खमा० देकर स्तवन बोलने (१) " नमोऽस्तु वर्द्धमानाय " के बदले साध्वियां "संसार दावा" कहती है, उसकी मी १ गाथा पहले गुरुणी बोल देवे बाद दूसरी साध्वियां तीनों गाथा कहें। 2010_05 For Private & Personal Use Only विधि - संग्रह: ॥ २७ ॥ www.jainelibrary.org

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