Book Title: Avashyakiya Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhimuni, Buddhisagar
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya

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Page 33
________________ साधुसाध्वी ॥ २९ ॥ Jain Education Interna खुद्दोवद्दव ओहडावणत्थं करेमि काउस्सग्गं' अन्नत्थ० कहकर ४ लोगस्सका काउस्सग्ग करे, पारकर प्रगट लोगस्स कहे। फिर खमा० देकर सज्झायके २ आदेश बोले, बाद गुरु अथवा गुरुने जिसको आदेश दिया। हो ? वह साधु सज्झाय ( १ ) कहे। बाद खमा० देकर इच्छा० संदि० भगवन् चैत्यवंदन करूं ? इच्छं कहकर 'श्रीसेढी तटिनी तटे" यह चैत्यवंदन कहकर नमुत्थुणं० जावंति चेइयाई० जावंत केवि साहू ० नमोऽर्हत्० कहकर "उवसग्गहरं ० " अथवा पार्श्वनाथस्वामीका छोटा स्तवन कहे और जय वीयराय ! कहे, बाद “ सिरिथंभणयद्विय पास" इत्यादि २ गाथा कहकर बंदणवत्तिआए० अन्नत्थ० कहकर ४ लोगस्सका काउस्सग्ग करे, | पारकर प्रगट लोगस्स कहे । खमा० देकर 'श्रीचतुरशीति गच्छ शृंगारहार जंगम जुगप्रधान भट्टारक दादाजी श्रीजिनदत्तसूरिजी चारित्र चूडामणि आराधना निमित्तं करोमि काउस्सग्गं, अन्नध०' कहकर १ लोगस्सका (१) जिस दिन विहार करके दूसरी जगह में जाय ? उस दिन तथा पख्खी, चौमासी और संवच्छरीके पहिले दिनतो धम्मो मंगल की १७ गाथा कहे और परश्री, चौमासी तथा संवच्छरीके दिन ५ गाथा कहे, अन्य दिन खुशी आवे सो सज्झाय कहे । 2010-05 For Private & Personal Use Only विधि संग्रह: ॥ २९ ॥ ww.jainelibrary.org

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