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साधुसाध्वी वाला तो-'इच्छा० सदि० भग० स्तवन भणुं ?' कहे और दूसरे सबजणे 'इच्छा० संदि० भगः स्तवन - ॥२८॥ साभलं ? ' कहें । यदि दूसरेको आदेश दिया हो ? तो गुरु 'भणेह सुणेह' कहें और यदि दूसरेको आदेश न है
दिया हो ? तो केवल 'सुणेह' ऐसाही कहें. बाद स्तवन बोलनेवाला नमोऽर्हत्० कहकर ११ गाथासे लगाकर एक || सो आठ गाथा तकका कोईभी भगवानका स्तवन (२) कहे, कितनेएक "वर कनक शंख विद्रुम" यह गाथा भी पीछेसे कहते हैं, बाद पहला खमा० देकर 'आचार्य मिश्रं' । दूसरा खमा० देकर 'उपाध्याय मिश्रं' तीसरा खमा० देकर 'सर्व साधून्' कहे ।
• विशेष-विधि:बाद चौथा खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग० ! देवसिय पायच्छित्त विसोहणत्थं काउस्सग्ग करूं,? इच्छं देवसिय पायच्छित्त विसोहणत्थं करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ०' कहकर ४ लोगस्सका काउस्सग्ग करे, पारकर
प्रगट लोगस्स कहे। बाद खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग०! 'खुद्दोवद्दव ओहडावणत्थं काउस्सग्ग करूं? इच्छं 3 (२) विहारके दिन तथा पख्खी चौमासी और संवच्छरीके पहले दिन स्तवनकी जगह “उल्लासिकम” स्तोत्र कहनेकी आज कल
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॥२८॥
प्रवृत्ति है।
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