Book Title: Avashyakiya Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhimuni, Buddhisagar
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ साधुसाध्वी गुरु कहे 'कड्ढेह' शिष्य 'इच्छं' कहकर १-१ अथवा ३-३ नवकार तथा करेम भंते० ! कहकर "चत्तारि॥२६॥ मंगलं" आदि तीन आलावे कहे, बाद "इच्छामि पडिक्कमिउं जो मे देवसिओ०" तथा "इच्छामि पडिक्क मिउं इरियावहियाए०" कहकर राइय पडिक्कमणेकी तरह पगामसिज्जाए कहे, तीन जगह देवसीका पाठ 2 उपयोग रख कर बोले और २ बार वांदणे देकर अभ्भुटिया खमाकर फिर २ वांदणा देवे। यदिश्रावकभी साथ हो? तो "आयरिय उवज्झाए" कहे अन्यथा न कहे बाद चारित्राचारकी शुद्धि । * के लिये करेमि भंते० ! इच्छामि ठामि काउस्सग्गं जो मे देवसिओ० तस्स उत्तरि० अन्नत्थ० कहकर दो लोगस्स है * का काउस्सग्ग करे, पारकर दर्शनाचारकी शुद्धिके लिये प्रगट लोगस्स० सव्वलोए अरिहंत चेइयाणं० अन्नत्य कहकर १ लोगस्सका काउस्सग्ग करे, पारकर ज्ञानाचारकी शुद्धिके वास्ते पुख्खरवरदीवऽड्ढे० सुअस्स भगवओ , करेमि काउस्सग्गं०वंदणवत्तिआए०अन्नत्य कहकर फिर १ लोगस्सका काउस्सग्ग करे, पारकर सिद्धाणं बुद्धाणं. कहकर 'सुयदेवयाए करेमि काउस्सग्गं' अन्नत्थ० कहकर १ नवकारका काउस'ग करे, गुरु पारकर नमोऽर्हत्० ॥२६॥ कहकर “सुवर्णशालिनी देयात्, द्वादशांगी जिनोद्भवा । श्रुतदेवी सदामह्य,-मशेषः श्रुतसम्पदम् ॥ १॥ Jain Education Intern ISROI2010_05 For Private & Personal use only Jww.jainelibrary.org +

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140