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साधुसाध्वी भग० ! गोचरी आदि पडिक्कमणऽत्थं काउस्सग्ग करूं ?, इच्छं गोचरी आदि पडिकमणत्थं करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थ० ' कहकर १ नवकारका काउस्लग्ग करे, पारकर प्रगट नवकार १ कहकर आगे लिखी गाथा बोलनी" कालो गोयरचरिया, थंडिल्ला वत्थ पत्त पडिलेहा । संभरउ सो साहू, जस्स वि जं किंचिऽणुवउत्तं । १ । ”
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बाद अपने से बड़ों को सबको वंदना करके इरियावही पडिकमे, खमा० देकर कहे- 'इच्छा० संदि० भग० ! चैत्यवंदन करूं ?” गुरु कहे- ' करेह' सब जणे कहें- 'इच्छं' | बाद गुरु आज्ञासे कोई भी साधु या | श्रावक जय तिहुअणकी पहलेकी ५ गाथा और अंतकी २ गाथा कहे, पीछे गुरु “जय महायस ! " इत्यादि २ गाथा कहें, अथवा जय तिहुअणकी गाथायें तथा जय महायस ! ये दोनों गुरु ही कहें, बाद नमुत्थुणं कहकर | सवेरे (राइय पडिक्कमणेके अंतमें जैसे ४ थुइसे देववंदन करनेका कहा है उस ) की तरह ४ थुइसे देववंदन करे, | जिसमें गुरु काउस्सग्ग पारलेवे बाद जिस साधु या श्रावक ने आदेश लिया हो ? वह काउस्सग्ग पारकर पहले तथा छेल्ले नमोऽर्हत्० कहे, और बीचकी दो थुइयों में नमोऽर्हत्० न कहते हुए ४ थुइयां कहे, बाद दूसरे सब साधु - श्रावक काउस्सग्ग पारें । देववंदन कर चुके बाद बैठकर नमुत्थुणं कहकर ४ खमा०
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विधि
संग्रह:
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