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साधुसाध्वी रहित चलते हुए ४२ दोष (१) रहित गौचरी लेकर “निसिही ३ नमो खमासमणाणं " कहते हुए उपाश्रयमें गुरुके पास आकर यदि शक्ति हो ? तो गौचरी हाथमें ही रखे. और शक्ति न हो ? तो गौचरी ठिकाने रख कर आगे लिखे मुजब गौचरी आलोवे -
॥ १५ ॥
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मा० देकर इरियावही पडिक्कमे, जितने घरोंसे जिस प्रकार गौचरी ली हो ? वह सब काउस्सग्गमें याद | करे अथवा एक लोगस्स का काउस्लग्ग करे, पारकर प्रगट लोगस्स कहकर बोले- 'इच्छा० संदि० भग० ! भात पाणि आलोऊँ ?' गुरु कहे- 'आलोएह' बाद 'इच्छं' कहकर स्त्री या पुरुषके हाथसे. वाटकी या कुडछीसे | जिस तरह गौचरी ली हो ? वह सब हकीकत गुरुके आगे कह सुनावे, बाद " इच्छामि पडिक्कमिउं गोयरच| रियाए० " यह आलावा कहकर तस्स उत्तरि० अन्नत्थ० कहकर काउस्सग्गमें
"अहो !! जिणेहिं असावज्जा, वित्ति साहूण देसिया | मुक्ख साहण हेउस्स, साहुदेहस्स धारणा १” (दश० ५ अ०, १उ०) यह गाथा चिंतवें, पार कर प्रगट लोगस्स कहे, बाद चौमासे में पाटको और शेषाकालमें भूमिको पूंज
(१) नम्बर पांच 'आधार - दोष - विचार' देखो।
2010_05
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संग्रह:
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