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साधुसाध्वी म
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गुरु कहे-'आयारो न मोत्तव्यो' बाद 'तहत्ति' कहकर जीमणी मुहि ओघे ऊपर स्थापन कर १ नवकार गिणे. बाद आगे लिखे हुए पञ्चक्खाण पारनेके पाठ बोलकर १ नवकार गिणे ।
नमुक्कारसहि आदि पञ्चक्खाण पारनेका पाठउग्गए सूरे नमुक्कार सहियं पोरसि० साढ पोरस (सूरे उग्गए पुरिमऽनु-अव8) मुहि सहियं पञ्चक्खाणा कर्युचउव्विहार, आयंबिल एकासगुं, निवि एकासगुं, एकासगुं, बियासणुं पञ्चक्खाण कर्यु तिविहार, पञ्चक्खाण । फासियं, पालियं, सोहियं, तीरियं, किट्टियं, आराहियं, जं च न आराहियं तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥
इनमें नमुक्कार सहियंसे लगा कर साढपोरसी तकमें जो पच्चक्खाण किया हो ? वहां तकके सब नाम बोलने, आगे के नहीं और यदि पुरिमऽव या अवह हो ? तो "सूरे उग्गए-पुरिमऽ४" या "अवटुं” जो होवे ? सो बोलना, पहले के नहीं, यदि आयंबिल हो ? तो “ आयंबिल एकासणुं पच्चक्खाण कर्यु तिविहार" | तथा निवि हो ? तो “निवि एकासणुं पच्चक्खाण कर्यु तिविहार” कहना, इसी तरह एकासणेमें “एकास' ।
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