Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
View full book text
________________
- आस्था की ओर बढ़ते कदम कारण भक्ति समाप्त हो जाती है। जैन इतिहास में हजारों साधक ऐसे आये, जो आये तो सिंह वृति की तरह, पर गए श्रृंगाल की तरह। इस की उदाहरण में हमें पीछे कुछ नाम दे आये हैं। इन मिथ्यात्वी लोगों के भक्तों की संख्या भगवान महावीर के भक्तों से ज्यादा थी। इन में चार्वाक का, उदाहरण हमारे सामने है। जो कहता था कि “मानव जन्म वार वार नहीं मिलता, जो कुष्ठ खाना-पीना है अभी कर लो, कल को तो तुम मिट्टी में मिल जाओगे। फिर कहां संसार आगमन होगा। आप तो धरती में मिल जाओगे।"
भगवान महावीर के समय ३६३ पाखण्डी मतों का वर्णन मिलता है। जिन को प्रभु महावीर ने अनेकांतवाद के सिद्धांत के साथ एक करने का प्रयत्न किया। महात्मा बुद्ध के जीवन में ६३ मतों का वर्णन मिलता है। इतनी दाशनिक विचारधाराओं की सामना अनेकांत के सिद्धांत विना संभव नहीं था। बाकी सम्यक्त्व जव मिथ्यात्व की ओर बढ़ता है तो उस की पूर्व श्रद्धा का सिंहासन डोलता प्रतीत होता है। पर अगर सद्गुरू की संगत निल जाए, मिथ्यात्व समाप्त हो जाता है। संसार में अधिकांश जीव मिथ्यात्व में फंसे हैं, उन्हें निकालने के लिए ही हमारे शास्त्र है। सम्यकत्व के आदर्श :
_श्री उपासक दशांग सूत्र में कुण्डकोलिक श्रावक का वर्णन है। जिसे एक मिथ्यात्वी दैव ने धर्म मार्ग से गिराने के लिए आया था। उसने देव माया से उस के पुत्र के सात टुकड़े कर दिए। उस के मास को तला, लहू के छींटे मारे। फिर उस देव ने माता-पिता को मारने की धमकी दी। कुण्डकोलिक ने उस देव को पकड़ने की चेष्टा की। पर उस के हाथ में खम्बा आया। माता ने उन्हें पुनः धर्म में स्थिर किया। यह कुछ समय का अज्ञान था। जिस का