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अष्टांगहृदयकी
२५६
विषय.
पृष्टांक. विषय. गर्भाशय में जीवकी वृद्धि २५२ | गर्भको अवस्था गर्भाशय में गत जीवका न दीखना २५३ पुंसवन प्रयोग सीवकी अनेक योनि में दृष्टांत
अन्य प्रयोग स्त्रीपुंसादि का जन्म
सफेदकटेरी की जड़ एक काल में अनेक गर्भ
पुत्रोत्पादन में अन्य प्रयोग विकृत गर्भ का कारण
गर्भणी का उपचार प्रतिमास में रजात्राव
२५४ गर्भणी को त्याजकर्म वीर्यवान संतानोत्पत्ति में कारण , बातलादि अहार का, निषेध ।। शुक्रार्तव संयोग में गर्भकी अनुत्पत्ति । मृदु औषधों का सेवन वातादि दोषज शुक्र का ज्ञान
गर्भके दूसरे मासके लक्षण शुक्रार्तव का साध्यासाध्य विचार २५५ त्यक्तगर्भ के लक्षण वातादिसंज्ञक शुक्रार्तव की चिकित्सा, गर्भणी के हिताहित पथ्यका विचार , कुणप की चिकित्सा
तीसरे महिने में गर्भका लक्षण....... २६३ प्रंथिसंज्ञक शुक्रकी चिकित्सा
गर्भके वढाने का प्रकार पूय शुक्र की चिकित्सा
" चौथेसे सात महिनेतक गर्भकीदशा ,, क्षीण शुक्र की चिकित्सा
गर्भणी के कंइवादि पुरीष संक्षक शुक्र की चिकित्सा ,
उक्तकाल में उपचार
२६४ ग्रंथ्यानक की चिकित्सा
अष्टममांस में तेज संचार कुषप पूय शोगित की चिकित्सा
अष्टममांस का उपचार शुद्धशुक्रावर्व के लक्षण २५७
गर्भप्रसव का काल गर्भस्थित होने के पहिले कर्तव्यता
नवममास का उपचार पुरुष का उपक्रम
पुत्रादि होने के लक्षण स्त्री का उपक्रम
नपुंसक होने के लक्षण गर्भग्रहण का काल
गर्भिणी का सूतिकाग्रह में आश्रय २६६ ऋतुकाल से पीछे योनिसंकोच
आसन्न प्रसवा के लक्षण वायुको कारणता
उपस्थितगर्भा के साथ कर्तव्य ऋतुकाल में स्त्रीका वर्तन
उक्तकर्म का फल ऋतुकाल का परिमाण
गर्भिणी का खट्वागपादि पुत्रेष्टियक्ष
गर्भसंग में धूपनादि स्त्रीका गुप्तसेवन
अनुवासनादि दंपती के पुत्रचिंतन का प्रकार
मकल्लरोग में उपाय पुत्रविधि का पश्चात्कर्म
प्रसूती का उपचार मंत्रपाठ
पेथपान की विधि मंत्र पाठान्तरकर्म
२६० विशित का अनुपयोग लघोगर्भा के लक्षण
प्रसूती का यत्नपूर्वक उपचार
२६५
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