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अनुक्रमणिका।
पृष्टांक.
२४
२४७
विषय.
पृष्टांक. | विषय. वैद्य का शस्त्र कर्म में शौर्यत्व २३६
त्रिंशोऽध्यायः । तिर्यक छेदन के योग्य स्थान , क्षारकर्म को श्रेष्ठत्व
२४३ शस्त्र कर्म में रोगी को अश्वासन क्षार के उपयुक्त विषय
२४४ घाव में बत्ती का प्रवेश
क्षार का निषेध घाव के पीछे का कृत्य
क्षार की क्रिया घाव में पट्टी आदि का फल २३७ मृदुतीक्षण क्षार
२४५ ब्रण का रक्षण
। उक्त क्षारों का प्रयोग गरम जल के उपचारादि
क्षार के गुण वण में वर्ण्य कर्म
अंतरानुग व द्वार से क्षार के गुण घाव में भोजनादि
क्षार सुयोग की विधि पथ्य का हितकारत्व
क्षार के मार्जन की विधि व्रण में नव धान्यादि
૨૩૮ क्षारकर्म में भोजनादि घाव में वालोशीर व्यंजनादि
क्षार दग्धस्थान पर लेप. धाव के धोने का नियम
प्रणरोपण तिलकल्क अतिस्निग्धादि बत्तियों का निषेध , सम्यक् दग्धादि के लक्षण घाव में बत्ती लगाने का कारण २३९ अतिदग्ध गुदा के उपद्रब २४८ कच्चों में नश्तर लगाने का उपचार , क्षाराति दग्ध नाक कान चौड़े मुख वाले व्रणो का सेवन . , क्षारदग्ध में कांजी आदि की उपयोगिता... सीने के पूर्व कर्म
क्षार से अग्निकर्म को श्रेष्ठता रोगी को अश्वासन
त्वचा में अग्निदाह घाय का फिर सीमना
मांसदाह पट्टी बांधने का स्वरूपादि
सिरादाह ककादि अन्य व्याधि में बंधन
भग्निदाह के अयोग्यस्थान वंधन का प्रकार
सुदग्ध में कर्तव्य बंधनों का गाढा वा ढीला बांधना २४१
सुदग्ध के लक्षण पित्तरतोत्थ घार्यों में बंधन
दुर्दग्ध के लक्षण
प्रमाद दग्ध के चार भेद पट्टी न बांधने का फल
तुत्थ दग्ध की चिकित्सा वंधन के गुण
दुर्दग्ध की चिकित्सा पांच प्रकार के व्रण
सम्यक् दग्ध की चिकित्सा स्थिरादि प्रणों का वर्णन
अतिदग्ध की चिकित्सा न बांधने के योग्य व्रण
नेह दग्ध की चिकित्सा कृमि वाले घावों का वर्णन
सूत्रस्थान की समाप्ति कृमियों की चिकित्सा
शारीरस्थानम् । भीतर दोषवाले घाव रोपित ब्रण में वर्जितकर्म
प्रथमोऽध्यायः । वबै को उपदेश
गर्भ होने का कारण
२४३ /
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