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-( अनुभव का उत्पल )
झपट
सम्भवत: वह कबूतर था। वह आया होगा रात के बाद मंगल प्रभात का स्वप्न लिए। किन्तु उसने पाया कुछ
और। आला खाली था। केवल अंडे थे। उनका पोषण करने वाली नहीं थी। वह कमरे के चारों ओर घूमा। पर उसे पा नहीं सका।
____ मैं शवासन करने को सो रहा था। वह मेरी ओर देखने लगा। मैंने उसकी करुण आंखों में मूक वेदना की गाथा को पढ़ा और पढ़ा उसकी अन्तर आत्मा को। मुझे स्मरण हो आया उस भगवद् पाणी का- 'जहां संयोग है, वहां वियोग होगा। जो संयोग में सुखी है, वह वियोग में दुःखी होगा। सुखी वह है जो संयोग-वियोग की अनुभूति से ऊपर उठ जाए।'
वियोगी कबूतर का दिल रो रहा था। अब अण्डे भी उसके लिए भार थे। पालन मां ही कर सकती है। पिता में उतना प्रेम नहीं होता, जितना कि पालन में होना चाहिए। कबूतर भार के दायित्व से झुक सा रहा था। किन्तु यह भार उस बिल्ली को नहीं लगा, जिसने कबूतर की स्वप्न सृष्टि को एक ही झपट में उठा लिया था।
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