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अनुभव का उत्पल
बहु-निष्ठा
मैंने सोचा- यह बहुनिष्ठा फिर क्या बला है ?
उत्तर की अपेक्षा थी पर दे कौन ? भगवान् ने कह
"
दिया- “ अणेगचित्ते खलु अयं - पुरिसे" । अब एक-निष्ठा
की बात कैसे की जाए ?
एक-निष्ठ आखिर है कौन? रानी ने राजा को धोखा दिया, महावत ने रानी को और वेश्या ने महावत को । कामना का क्षेत्र ही ऐसा है। पहले लगाव होता है, फिर सन्देह और निराशा ।
निराशा से परे जो है, वह ब्रह्मचर्य है। जहां आशा ही नहीं, वहां निराशा कैसी ? यही है एक निष्ठा। यहां पहुंच कर ही मैंने समझा, उत्तर पाया, बहु-निष्ठा क्या है ?
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