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- अनुभव का अपना
अनुभव का उत्पल
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मैंने क्या किया?
आंख खुली होती है, तब अपने को धन्य मानता हूं। जिसे देखना चाहिए, उसे नहीं भी देखता। किन्तु जो नहीं देखना चाहिए, उसे बड़े प्यार से देखता हूं। आंख मूंदने पर वर्तमान भूत से पूछ बैठता है- मैंने क्या किया?
जीभ चलती है, तब अनिर्वचनीय सुख की अनुभूति होती है। किसलिए खाना चाहिए? यह सिद्धान्त उसकी तहों में छिप जाता है। स्वादपूर्ण वस्तु खाना मानों जीवन का साध्य हो, वैसे खा जाता हूं| आमाशय पर कितना बोझ डाला, यह भी ख्याल नहीं रहता। पानी पीने के समय, फूली हुई आंतें मुझे चौंका देती है- यह मैंने क्या किया?
___ मन में हिलोर उठती है। कल्पना की पीठ पर सवार हो अनन्त की ओर उड़ जाता हूं। आनन्द की धार बह चलती है। इस छोर से उस छोर पल में घूम आता हूं। समझने लगता हूं- मैं सफल हो गया। मन शान्त होता है और यथार्थ की नुकीली धार मुझे खरोंचने लग जाती है। मोह का छिलका हटते ही दिल रो उठता है- हाय! यह मैंने क्या किया?
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