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अनुभव का उत्पल
न्याय की मांग
मैं मानता हूं कि उस व्यक्ति ने मेरे साथ न्याय नहीं किया । किन्तु यह मानना क्या सचमुच सही है ? यदि मेरा अन्तःकरण निर्मल नहीं है, उसमें घृणा, वैमनस्य, ईर्ष्या, द्वेष आदि की अग्नि प्रज्वलित है और उसकी धूमकलिकाएं इतस्ततः विकीर्ण है तो मुझे मेरे जैसे ही दूसरे व्यक्ति से न्याय की मांग करने का अधिकार है ?
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