________________
अनुभव का उत्पल
उभयतः पाश
आकाश के सामने प्रस्तुत होता हूं तब अपने को एक परमाणु जैसा पाता हूं। सागर के सामने प्रस्तुत होता हूं तब अपने को एक बिन्दु जैसा पाता हूं। मैं चेतन हूं, आकाश अचेतन है। मैं विचारशील हूं, सागर विचारशून्य है, फिर भी आकाश और सागर की तुलना में मैं छोटा हूं।
Jain Education International
क्या यह चैतन्य को चुनौती नहीं है? क्या चैतन्य असीम और अपार नहीं है ? यदि है तो वह साढ़े तीन हाथ की सीमा में सीमित क्यों? यदि वह असीम और अपार नहीं है तो आकाश और सागर को अपनी बांह में भरने का प्रयत्न क्यों ?
१६१
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org